आमंत्रण
जनकवि भोला जी स्मृति दिवस
15 जनवरी 2015, समय- 2 बजे दिन, स्थान- नवादा थाना के पास, आरा, बिहार
अभी हाल में अनिल जनविजय ने भोला जी की तस्वीर फेसबुक पर लगाई तो बहुतों को उनके चेहरे में नागार्जुन नजर आये. अभी जब पीके फिल्म की लोगों ने बड़ी तारीफ की तो मुझे अपने पीके यानी पान वाले कवि यानी भोला जी याद आये. लेकिन वे कोई एलियन नहीं थे, बल्कि इसी दुनिया के मनुष्य थे, और अपने पान की दूकान पर बैठकर न केवल निर्भीकता के साथ धर्म के नाम पर पाखंड करने वालों की खबर लेते थे, बल्कि अपनी ही स्वार्थपरता में डूबे शिक्षित वर्ग, नौकरशाह, राजनेता, मीडिया, फिल्म सबकी गडबडियों की भी तीखी आलोचना करते थे। कंधे में लाल झोला और उसमें एक हथौड़ा हमेशा उनके पास रहता था। 2013 में डाइबिटीज से उनका निधन हुआ था।
भोला जी आरा शहर और नवादा मुहल्ले की पहचान थे। अपनी पान की दूकान पर बैठकर वे जीवन भर गरीब-मेहनतकश जनता के दुख-दर्द और गुस्से को अपनी कविताओं के जरिए अभिव्यक्त करते रहे। कविता के एवज में उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। बेबाक व्यवहार और सीधे सच कहने की उनकी अदा के कारण जहां कई लोग उनसे भड़कते थे, वहीं उसकी वजह से ही उन्हें बहुत सारे लोग चाहते भी थे। भोला कवि ने पढ़े-लिखे लोगों के स्वार्थ और समझौतापरस्ती के कारण उनकी समझदारी पर सवाल खड़े किए। साहित्य के इतिहास में उन्हें जगह मिले न मिले, लेकिन अपने जानने वालों के दिल में उनकी जगह हमेशा रहेगी। कहीं का र्इंट कहीं का रोड़ा जोड़कर धाराप्रवाह प्रवचन के जरिए जनता को ठगने और ऐयाशी का जीवन जीने वाले बाबाओं, धर्मगुरुओं और भक्तिगीत के नाम पर फ़िल्मी गीत-संगीत की भद्दी पैरोडी गाने वाले गायकों या कविता को फूहड़ हास्य-मनोरंजन बना देने वाले कवियों के विपरीत भोला जी ने कविता को आम आदमी के संघर्ष की आवाज बनाने की कोशिश की। आज जबकि कला-संस्कृति-साहित्य सारे माध्यमों से पूंजीवादी-आत्मकेंद्रित संस्कृति का प्रचार चल रहा है, जब खुदा और ईश्वर के झगड़े लगातार बढ़ाए जा रहे हैं, तब आइए मेहनतकश जनता की संस्कृति के पक्ष में मजबूती से खड़े हों। भविष्य में बहुत सारे भोला हमारी आवाज बन सकें, इसका माहौल बनाएं। भोला जी आशुकवि थे। उनकी याद में हर साल किसी न किसी जरूरी सवाल या मुद्दे पर आशु कविता पाठ के आयोजन के बारे में भी हमलोग सोच रहे हैं.
निवेदक- जन संस्कृति मंच, आरा/ भाकपा-माले, नवादा (आरा) ब्रांच कमेटी
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