क्या हिन्दूवादी नेता पगला गये हैं? या उन्हें लग रहा है कि इस बार के बाद दिल्लीके तख्त पर फिर उन्हें फिर मौका मिलने वाला नहीं है? इसलिए जितनी आग लगानी हो, अभी लगा लो. पहले घर वापसी का तमाशा. अरे भाई, घर तो घर होता है, रोटी, कपड़ा और मकान, सामान्य जीवन जीने की व्यवस्था. सम्प्रदाय किसी का घर हुआ क्या ? यदि ऐसा होता तो भूख के असह्य हो जाने पर चांडाल के घर से कुत्ते की रान चबाते हुए पकड़े जाने पर विश्वमित्र चांडाल से यह यह क्यों कहते कि तू नीच! मुझे धर्म सिखायेगा! अरे यदि मैं जीवित रहा तो धर्म की पुनर्व्याख्या कर सकता हूँ, यदि मैं ही मर गया तो यह धर्म मेरे किस काम का?
याज्ञवल्क्य यह क्यों कहते कि पुत्र, पत्नी, धर्म-- सब कुछ अपने लिए ही प्रिय होता है. आत्मनस्तु कामाय वै सर्वं प्रियं भवति.
सच तो यह है कि इन वितंडावादियों को भी यह सब चोंचले आम जन के लिए नहीं अपनी राजनीति, या सत्ता सुख के लिए ही प्रिय हैं
दूसरा कहता है कि हिन्दू स्त्रियाँ चार बच्चे पैदा करें. जैसे औरत केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हो. कभी लोग यह भी मानते थे, जो मुँह देता है, वह हाथ भी देता है. बर्तन मल कर भी पेट भर लेगा. अभी- अभी तो पढ़े-लिखे परिवारों में कुछ समझदारी आयी है. वे समझने लगे हैं कि बच्चे पैदा करने से पहले पैदा होने वाले बच्चे के जीने लायक जीवन की व्यवस्था की लागत की भी चिन्ता करने लगे हैं.
जब भी मैं सरकारी या धर्मार्थ चिकित्सालयों के बाहर मरीजों की भीड़ देखता हूँ, तो उसमें मुस्लिम परिवारों की महिलाओं की संख्या अधिक दिखाई देती है, उनमें भी तपेदिक से पीडित महिलाएँ अधिक होती हैं. अस्वास्थ्यकर परिवेश, अधिक बच्चे और मुल्लाओं द्वारा अपने समाज को जड़ बनाये रखने की जिद.
मोदी के मायावी जाल के सम्मोहन में यह पता ही नहीं चल रहा है कि यह देश को, जनोत्थान की ओर ले जा और अम्बानियों के हाथों देश को गिरवी रखने की ओर.
याज्ञवल्क्य यह क्यों कहते कि पुत्र, पत्नी, धर्म-- सब कुछ अपने लिए ही प्रिय होता है. आत्मनस्तु कामाय वै सर्वं प्रियं भवति.
सच तो यह है कि इन वितंडावादियों को भी यह सब चोंचले आम जन के लिए नहीं अपनी राजनीति, या सत्ता सुख के लिए ही प्रिय हैं
दूसरा कहता है कि हिन्दू स्त्रियाँ चार बच्चे पैदा करें. जैसे औरत केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हो. कभी लोग यह भी मानते थे, जो मुँह देता है, वह हाथ भी देता है. बर्तन मल कर भी पेट भर लेगा. अभी- अभी तो पढ़े-लिखे परिवारों में कुछ समझदारी आयी है. वे समझने लगे हैं कि बच्चे पैदा करने से पहले पैदा होने वाले बच्चे के जीने लायक जीवन की व्यवस्था की लागत की भी चिन्ता करने लगे हैं.
जब भी मैं सरकारी या धर्मार्थ चिकित्सालयों के बाहर मरीजों की भीड़ देखता हूँ, तो उसमें मुस्लिम परिवारों की महिलाओं की संख्या अधिक दिखाई देती है, उनमें भी तपेदिक से पीडित महिलाएँ अधिक होती हैं. अस्वास्थ्यकर परिवेश, अधिक बच्चे और मुल्लाओं द्वारा अपने समाज को जड़ बनाये रखने की जिद.
मोदी के मायावी जाल के सम्मोहन में यह पता ही नहीं चल रहा है कि यह देश को, जनोत्थान की ओर ले जा और अम्बानियों के हाथों देश को गिरवी रखने की ओर.
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