डालर देश की प्रजा हम अंध भक्त
अपने ही ईश्वर के हाथों वध के
लिए आकुल व्याकुल हम अंध भक्त
हम हुए नंदन निलेकणि के हवाले
अमेरिकी फेडरल बैंक ही
वह असली तोता है, जिसमें है
भारतीय अर्थव्यवस्था की जान
जी बीस आदेश लागू करने को
दुरंत हो गयी चेनै एक्सप्रेस
Nandan Nilekani likely to contest a Lok Sabha seat from Karnataka on Congress ticket
FM P Chidambaram for expeditious implementation of G-20 decisions
पलाश विश्वास
यूआईडी अथॉरिटी के चेयरमैन नंदन नीलेकणी कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। माना जा रहा है कि नंदन नीलेकणि दक्षिण बंगलुरु संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।
चुनाव में जीत से उन्हें टेक्नोक्रेट-पॉलिटिशियन के तौर पर बेहतर काम करने के लिए ज्यादा अधिकार मिलेंगे।
वर्तमान में बीजेपी के अनंत कुमार दक्षिण बंगलुरु संसदीय सीट से सांसद हैं। बीजेपी के अनंत कुमार दक्षिण बंगलुरु संसदीय सीट से 5 बार सांसद रह चुके हैं। हालांकि हाल के विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी की करारी हार हुई थी।
इस चुनाव क्षेत्र में अपर क्लास प्रोफेशनल्स का दबदबा है। नीलेकणी का घर पॉश कोरामंगला एरिया में है, जो बेंगलुरु साउथ चुनाव क्षेत्र का हिस्सा है। यह सीट अभी बीजेपी के अनंत कुमार के पास है।
नारायण मूर्ति ने जून में इन्फोसिस की कमान अपने हाथ में लेने के बाद नीलेकणी से इन्फोसिस लौटने की रिक्वेस्ट की थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। नेहरू-गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले नीलेकणी को 2009 में यूपीए की जीत के बाद राहुल गांधी ऐडमिनिस्ट्रेशन में लेकर आए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें कैबिनेट रैंक की अपॉइंटमेंट दी और यूआईडी प्रॉजेक्ट का जिम्मा दिया।
यूनीक आइडेंटिफिकेशन (यूआईडी) प्रॉजेक्ट के बॉस नंदन नीलेकणी अगले साल पार्लियामेंट में नजर आ सकते हैं। इन्फोसिस के एक्स को-चेयरमैन नीलेकणी 2014 के जनरल इलेक्शन में कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। टिकट के लिए कांग्रेस लीडरशिप के साथ उनकी बातचीत अडवांस स्टेज में है। इसकी जानकारी रखने वाले कई सूत्रों ने इस खबर को सही बताया है। वह कर्नाटक से चुनाव लड़ सकते हैं।
ईटी अवॉर्ड पॉलिसी एजेंट ऑफ दी इयर, 2011 के विनर और इस साल के ईटी अवॉर्ड्स के जूरी मेंबर नीलेकणी ने खुद भी इस बात को सही बताया है। उन्होंने फ्यूचर प्लान पर इकनॉमिक टाइम्स के साथ लंबी बातचीत में कहा, 'फिलहाल अंतिम फैसला नहीं हो पाया है, लेकिन यह वक्त फैसले लेने का है। यह समय मेनस्ट्रीम में आने और जनहित में व्यापक बदलाव शुरू करने वाली शख्सियत बनने का है।'
डालर देश की प्रजा हम अंध भक्त
अपने ही ईश्वर के हाथों वध के
लिए आकुल व्याकुल हम अंध भक्त
हम हुए नंदन निलेकणि के हवाले
अमेरिकी फेडरल बैंक ही
वह असली तोता है, जिसमें है
भारतीय अर्थव्यवस्था की जान
जी बीस आदेश लागू करने को
दुरंत हो गयी चेनै एक्सप्रेस
नरेंद्र मोदी का हल्ला बहुत है
बहुत हल्ला है राहुल का भी
क्षत्रपों को लेकर शोर भी बहुत है
किसी को ख्याल नहीं कि
कारपोरेट चंदा और कालाधन,
विदेशी पूंजी और विदेशी मदद
तक सीमाबद्ध नही है राजनीति अब
नीति निर्धारण पहले से उनके हवाले हैं
राजनीति भी कारपोरेट हैं और सारे
जनप्रतिनिधि उनके गुलाम
जनता भी कुछ कुछ
समझने लगी है खेल
अब सीधे राजनीति में
कारपोरेट देवमंडल
की घुसपैठ होने लगी है
बहुत जबर्दस्त
परदे के पीछे से जो
कर रहे हैं सत्यानाश
अब सामने आने की
बारी उनकी है
सब जानते हैं कि
असली वित्तमंत्री कभी नहीं
रहे हैं प्रणव मुखर्जी
न असली वित्तमंत्री हैं चिदंबरम
मोंटेक की अगुवाई में
कारपोरेट टीम हांक रही इकानामी
मोंटेक को वित्तमंत्री बनाने से पहले
अंबानी राज्यसभा में हो गये दाखिल
जिंदल भी हुए जनप्रतिनिधि
अब नंदन निलेकणि
की बारी है ,जो 2012 में
भारत में थे सबसे धनी
इंफोसिस के चेयरमैन थे वे
यही उनकी काबिलियत
और हमने उन्हें खुशी खुशी
सौंप दी है उंगलियों की छाप
आंखों की पुतलियां
संविधान उल्लंघन विशेषज्ञ
अब सीधे जनादेश लेकर आयेंगे
खुलआम गला काटे जायेंगे
और चूं तक करने की इजाजत होगी नहीं
गली गली में चोर है
चोर है,इसका शोर भी बहुत है
डकैत है गली गली में
हर कोई जानता भी है उन्हें
और चूं करने की भी इजाजत नही ंहै
चोरी भी है और सीनाजोरी भी
इसी का नाम आर्थिक सुधार है
दिनदहाड़े डकैती का नाम
अब आर्थिक सुधार है
पूरे देश में बाबागिरि का बाजार है
मां बहन बेटियां सौंप रहे हैं लोग
उन्हींके हवाले,चाहे जैसा करें वे सलूक
किसी को बोलने की इजाजत नहीं है
अंध भक्त हैं सारे के सारे
चारों तरफ लगी है आग
मची है भगदड़ भयंकर
लेकिन प्रवच्न जारी है
ऐसी अंध आस्था है हमारी
दुनिया भर में सबसे प्रकांड है
देवमंडल हमारा और उन्हीं के
हिस्से में है स्वर्ग सारा का सारा
उन्हींको युद्ध अपराध की छूट
नरकवासी हम सब मर्त्यलोक वासी
मोहजाल कटता ही नहीं
जबकि सारा खेल एकदम
खुल्ला फर्रूखाबादी
कानून के राज में
रपट दर्ज हुई कहीं
तो भक्तों का मोर्चा
फटाफट सत्याग्रह
मसीहा पर आंच न आयें कहीं
मसीहा को कुछ भी करने की छूट
ईश्वर के वरदपुत्र हैं तमाम
खुद ईश्वर से कम नहीं मसीहा तमाम
भक्ति का मंजर अजब है
थैलियां सारी की सारी उन्हींके नाम
किसी को हिसाब मांगने की
इजाजत भी नहीं
कोई बोला विरुद्ध तो
तलवारें खींच जाती हैं
सारे भक्तजन मोर्चाबंद
हो जाते हैं फटाक
अपने बचाव के लिए
अपने हक हकूक के लिए
कहीं नहीं है कोई मोर्चाबंदी
खुलेआम मारे जा रहे हैं लोग
डालर देश की प्रजा हम अंध भक्त
अपने ही ईश्वर के हाथों वध के
लिए आकुल व्याकुल हम अंध भक्त
हम हुए नंदन निलेकणि के हवाले
अमेरिकी फेडरल बैंक ही
वह असली तोता है, जिसमें है
भारतीय अर्थव्यवस्था की जान
जी बीस आदेश लागू करने को
दुरंत हो गयी चेनै एक्सप्रेस
न बीमा पर अधिकार है
न पेंशन और पीएफ का ठिकाना है
बैंक खातों में जमा भी अब
बाजार के हवाले होना है
हर भत्ते पर टैक्स अलग भरना है
बच्चों को रोजगार नहीं कोई
कब तक रहेगी अपनी
नौकरी ठिकाना नहीं है
अब बलि से पहले
बकरे की पूजा की
रस्म अदायगी हो रही है
आम चुनावों से पहले
वांटिंग मशीनरी को
तेल लगाने की तैयारी है
भारतीय शेयर बाजार सीमित दायरे नजर आ रहा है।
निफ्टी (Nifty) को 5850 के स्तर पर अभी मजबूत सहारा मिलेगा और इसके बाद निफ्टी को अगला सहारा 5750 पर मिलेगा। मेरा कहना है कि अब घरेलू बाजार की नजर आरबीआई और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठकों पर लगी हुई हैं। मुझे आरबीआई के द्वारा नीतिगत ब्याज दरों में कुछ बदलाव करने की उम्मीद है। इसके अलावा रुपये की स्थिरता के लिए आरबीआई कदम उठा सकता है।
क्षेत्रों के लिहाज से आईटी मजबूत दिख रहा है, जबकि रियल्टी और बैंक कमजोर लग रहे हैं। निवेशकों को मेरी सलाह है कि निफ्टी के 5500 के स्तर के आसपास नयी खरीदारी करें। कारोबारी घाटा काटने का स्तर ध्यान में रख कर सौदें करें। अरविंद पृथी, निवेश सलाहकार (Arvind Pruthi, Investment Advisor)
(शेयर मंथन, 18 सितंबर 2013)
अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक सितंबर के आखिरी सप्ताह से अपनी बॉन्ड खरीद योजना को खत्म करने की शुरुआत कर सकता है। इस बारे में फैसला फेडरल रिजर्व की बैठक में लिए जाने की पूरी संभावना है। फेडरल रिजर्व ने इस बात के पुख्ता संकेत दिए हैं कि वह अब बॉन्ड खरीद योजना में कटौती को ज्यादा समय तक टालना नहीं चाहता।
क्या है बॉन्ड खरीद योजना : अमेरिका का फेडरेल रिजर्व बॉन्ड मार्केट में खरीददारी बढ़ाने के लिये हर माह 85 अरब डॉलर के बॉन्ड खरीदता है। इससे मार्केट में तेजी बनी हुई है। मगर अब फेड के लिये हर माह इतनी राशि मार्केट में डालना मुश्किल हो रहा है। इससे अमेरिका का वित्तीय घाटा बढ़ सकता है।
कम करने का आधार : बॉन्ड खरीद योजना को कम करने का प्रमुख आधार है, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी के संकेत। ताजा रिपोर्ट के अनुसार अगस्त में अमेरिकी मार्केट में सरकारी और प्राइवेट कंपनियों ने करीब 1,76,000 नई नौकरियां लोगों को दीं। इससे अमेरिका में बेरोजगारी की दर सात प्रतिशत से नीचे आ गई है। अगर स्थिति ऐसी ही रही तो यह छह प्रतिशत या उससे नीचे भी आ सकती है।
भारत तैयार : जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेकर लौटे आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद माया राम का कहना है कि अमेरिका ने इस बात को साफ कर दिया है कि वह बॉन्ड खरीद योजना को एकदम नहीं बल्कि धीरे-धीरे समाप्त कर देगा। ऐसे में ग्लोबल मार्केट पर इस योजना का जो असर पड़ेगा और उसका असर विकासशील देशों पर जिस तरह से पड़ेगा, उनसे निपटने के लिये इन देशों को काफी वक्त मिलेगा। फॉरेक्स मार्केट में रुपये के उतार-चढ़ाव पर अरविंद माया राम का कहना है कि कोई भी देश नहीं चाहता कि फारेक्स मार्केट में किसी प्रकार का कृत्रिम कारोबार हो। या फिर किसी प्रकार की सट्टेबाजी हो। यही कारण है कि अमेरिका समेत सभी देशों का यह मानना है कि फॉरेक्स मार्केट में सामान्य कारोबार होने दो। परिस्थितियां सुधरते ही मुद्रा की स्थिति में भी सुधार होगा। सभी देशों की मुद्राएं अपनी वास्तविक स्तर पर आ जाएंगी। जहां तक रुपये की बात है तो निश्चित तौर पर मौजूदा समय में यह वास्तविक स्तर से काफी नीचे हैं। उम्मीद है कि जल्द ही यह अपनी वास्तविक स्थिति पर आ जाएगा।
देश का फॉरन एक्सचेंज रिजर्व घटकर 275.5 अरब डॉलर रह गया है, जो 39 महीने में सबसे कम है। रुपए को सपोर्ट देने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लगातार डॉलर बेच रहा है। इस वजह से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। पिछले कुछ महीनों से रुपए पर लगातार प्रेशर बना हुआ है। एशियाई देशों में इंडियन करंसी का परफॉर्मेंस सबसे खराब रहा है। 22 मई को अमेरिकी फेडरल रिजर्व (भारत के आरबीआई जैसी संस्था) के चेयरमैन बेन बर्नांकी ने कहा था कि इकनॉमिक रिकवरी आने पर अमेरिका 85 अरब डॉलर के मंथली बॉन्ड बायबैक प्रोग्राम को वापस ले सकता है।
इसके बाद से फॉरन इन्वेस्टर्स भारत सहित इमर्जिंग देशों से पैसा निकाल रहे हैं। इससे उन देशों की करंसी की वैल्यू डॉलर के मुकाबले कम हुई है। हालांकि, करंट अकाउंट डेफिसिट ज्यादा होने से इंडिया की करंसी कुछ ज्यादा ही गिरी है। फेडरल रिजर्व के बयान के बाद अमेरिका में बॉन्ड यील्ड बढ़ी है। इसलिए वहां का बॉन्ड मार्केट इन्वेस्टर्स के लिए अट्रैक्टिव हो गया है। अप्रैल के बाद से रुपया 27 फीसदी गिरकर 28 अगस्त को रिकॉर्ड लो लेवल 68.80 पर बंद हुआ था। इसकी तुलना में इंडोनेशिया का रुपय्या इस साल 12 फीसदी गिरा है। वहीं, मलेशिया के रिंगिट की वैल्यू डॉलर के मुकाबले 8 फीसदी कम हुई है। इस साल जापान की करंसी येन की वैल्यू 11.6 फीसदी घटी है।
रघुराम राजन के आरबीआईर् का गवर्नर बनने के बाद जिन उपायों का ऐलान हुआ, उनसे रुपए में कुछ रिकवरी आई है। शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले इंडियन करंसी 65.20 पर रही। यह गुरुवार के क्लोजिंग लेवल से 1.10 रुपया ज्यादा है। एक विदेशी बैंक के फॉरेक्स डीलर ने बताया, 'मार्केट का सेंटिमेंट काफी बेहतर हुआ है।' रघुराम राजन के गवर्नर बनने के बाद आरबीआई ने एफसीएनआर-बी डिपॉजिट हासिल करने के लिए स्वाप कॉस्ट पर सब्सिडी देने का ऐलान किया है। उसने एक्सपोर्टर्स के लिए कैंसल्ड फॉरवर्ड एक्सचेंज कॉन्ट्रैक्ट की री-बुकिंग लिमिट भी बढ़ा दी है।
एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ऑफ इंडिया (एसोचैम) ने कहा है कि अमेरिका के फेडरल रिजर्व की एकतरफा कार्रवाई का सामना करने के लिए उभरती अर्थव्यवस्थाओं को मिलकर रणनीति बनानी चाहिए।
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन बेन बर्नान्के ने हाल ही में कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार आने के साथ ही बैंक बाजार से बॉण्ड खरीद कार्यक्रम को धीमा कर सकता है। उनकी इस घोषणा के बाद से ही दुनियाभर के बाजारों में गिरावट का रुख बना हुआ है।
एसोचैम के अनुसार वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, चीन, रूस, इंडोनेशिया और तुर्की के वित्तमंत्रियों से बात कर तुरंत बैठक बुलानी चाहिए। इन देशों के केंद्रीय बैंकों के गवर्नर भी बैठक में शामिल होने चाहिए। उद्योग मंडल के अनुसार वास्तव में भारत को नई दिल्ली में ही इस बैठक का आयोजन कर लेना चाहिए और मौजूदा स्थिति पर चर्चा करनी चाहिए।
फेडरल रिजर्व के चेयरमैन ने मई में बॉण्ड खरीद कार्यक्रम में धीरे-धीरे कमी लाने की घोषणा की थी। उसके बाद से डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 20 प्रतिशत तक गिर चुका है। बुधवार को भी कारोबार के दौरान यह 68.75 रुपए प्रति डॉलर के नए न्यूनतम स्तर को छू चुका है। शेयर बाजार में भी गिरावट जारी है और बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 18,000 अंक से नीचे चला गया।
उद्योग मंडल ने कहा है कि बुधवार को स्थिति ऐसी है, जब कुछ ही दिनों के अंतराल में डॉलर के मुकाबले रुपया 10 से 12 प्रतिशत तक गिर गया। इससे सारे गणित गड़बड़ा गए। सरकार ने हालांकि स्थिति को संभालने और अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिए कई कदम उठाए हैं।
उद्योग मंडल के अनुसार भारत और अन्य विकासशील देश इस तरह असहाय होकर स्थिति को देखते नहीं रह सकते। उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इस समय मिलकर अमेरिका और यहां तक कि बहुपक्षीय एजेंसियों विश्व व्यापार संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) पर दबाव डालना चाहिए कि फेडरल रिजर्व की एकतरफा कार्रवाई से पैदा हुए इस संकट को रोका जा सकता है और इसका दोष विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर नहीं थोपा जाना चाहिए।
वैश्विक हालात बुधवार को ऐसे बन पड़े हैं जिससे कि विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था खतरे में नजर आ रही है। भारत जैसे देश जो पहले ही ऊंचे राजकोषीय और चालू खाते के घाटे से जूझ रहे हैं, उनकी अर्थव्यवस्था पर वैश्विक स्थिति का काफी बुरा असर पड़ रहा है।
एसोचैम के अनुसार कि जिस तरह के झटके उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर इस समय देखे जा रहे हैं उससे विश्व अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और उदारीकरण की विश्वसनीयता को लेकर ही सवाल उठने लगेंगे। ऐसी स्थिति में आलोचकों को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि 'हमने पहले ही यह कहा था'।
देश की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए यह जरूरी है कि हम वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में आए बदलाव पर ध्यान केंद्रित करें और उनसे तालमेल स्थापित करें। विस्तार से जानकारी दे रहे हैं सुमन बेरी।सौजन्य बिजनेस स्टैंडर्ड।
हाल के दिनों में रुपये के मूल्य में जो गिरावट का दौर देखने को मिला है उससे देश के लोगों को इस बात का अहसास हुआ है कि देश की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर किस कदर दूसरे देशों से जुड़ी हुई है। इसके अलावा वैश्विक आर्थिक संकट के पांच साल बाद यह आर्थिक गतिविधियों में एक किस्म के बदलाव की भी वाहक बन रही है जहां उभरते बाजार विकास के लिए संघर्ष कर रहे हैं जबकि विकसित देशों का विकास तेज गति से हो रहा है।
पिछले एक दशक के दौरान वैश्विक उत्पादन में विकास तीन चरणों से गुजरा है। पहला चरण वर्ष 2003 से 2007 तक का वैश्विक तेजी का युग। उस वक्त वैश्विक स्तर पर वास्तविक विकास दर अत्यंत कम बनी हुई थी जिसका फायदा घरेलू और वित्तीय संस्थानों द्वारा ली गई अत्यधिक छूट को मिला था। गहन आंतरिक सुधारों के एक दशक बाद चीन के विश्व व्यापार संगठन में पदारोहण ने पहले ही इसे बल प्रदान किया था। विकसित विश्व में स्थिर गति से विकास हुआ लेकिन उभरते बाजारों में बहुत तेज गति से। इस वजह से वैश्विक विकास दर वर्ष 2003 के 3.7 फीसदी से बढ़कर वर्ष 2007 में 5.4 फीसदी हो गई। इसके बाद वर्ष 2008-09 की गिरावट का दौर आया और विकसित अर्थव्यवस्थाओं का प्रदर्शन गिरा।
जापान जैसे कुछ देशों में तो 10 फीसदी की नाटकीय गिरावट देखने को मिली और कुलमिलाकर वैश्विक स्तर पर विकास में एक किस्म का ठहराव आ गया। वर्ष 2010 में बाजार ने एक बार फिर वापसी की और इसके लिए काफी हद तक विकसित और उभरते देशों में जारी किए गए प्रोत्साहन पैकेज जिम्मेदार थे। उसके बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे फिर गिरावट का रुख आने लगा। ऐसा मोटेतौर पर इसलिए हुआ था क्योंकि विकसित देशों में मांग लगातार कमजोर बनी हुई थी जबकि भारत और चीन समेत उभरते बाजारों को वर्ष 2009 के आर्थिक प्रोत्साहन के फलस्वरूप पैदा हुए मुद्रास्फीति के प्रभाव से भी निपटना था।
वर्ष 2010 के बाद से विकसित देशों ने मोटे तौर पर अपनी वित्तीय व्यवस्था को स्थिर बनाने और घरेलू क्षेत्रों के कर्ज को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि उन्होंने वित्तीय नीति के बारे में एकदम अलग रवैया अपनाया। अमेरिका के एकदम उलट ब्रिटेन और यूरो क्षेत्र ने राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को अधिक वरीयता दी। यूरो क्षेत्र को संकट से निपटने के क्रम में अतिरिक्त तकनीकी और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस अवधि में विकसित देशों की मौद्रिक नीति नाटकीय रूप से ढीली थी लेकिन इसका कोई गलत परिणाम देखने को नहीं मिला हालांकि अधिकांश विकसित देशों में ऋण के विकास की समस्यास बनी हुई थी। अमेरिका में क्वांटिटेटिव ईजिंग का मुख्य असर विकसित देशों के परिसंपत्ति बाजार खासतौर पर बॉन्ड पर पड़ा और एक हद तक तेजी से उभरते बाजारों को जाने वाली पूंजी पर भी। सुधार का यह दूसरा चरण जो करीब दो-ढाई साल चला, अब समाप्त होता नजर आ रहा है।
इस चरण की एक और बड़ी उपलब्धि रही मुद्रा अपस्फीति को टालना वह भी उस वक्त जबकि बेरोजगारी चरम पर थी। हालांकि अब मोटे तौर पर यह मान्यता है कि मौद्रिक परिस्थितियां सख्त होने जा रही हैं फिर भी यह बात ध्यान देने लायक है कि केवल विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ही ऐसा संकेत दिया है। बैंक ऑफ इंगलैंड और यूरोपियन सेंट्रल बैंक दोनों ने संकेत दिया है कि वे फिलहाल ढीलीढाली मौद्रिक नीति अपनाए रखना जारी रखेंगे। जबकि बैंक ऑफ जापान ने तो अभी अपनी पारी की शुरुआत ही की है। वैश्विक स्तर पर सुधार के क्रम में इस चरण के साथ जोखिम जुड़े हुए हैं लेकिन हमें इसका स्वागत करना चाहिए। पहली बात, विकसित देशों में विकास का यह रुझान भारत के लिए भी अच्छा है।
दूसरी बात, जैसे ही विनिमय दर के मोर्चे पर धुंआ छंटेगा, रुपये और चीन की मुद्रा युआन के बीच एक तरह की सुसंगतता देखने को मिलेगी। इ इकनॉमिस्ट पत्रिका के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में भारतीय मुद्रा का चीन की मुद्रा के मुकाबले 25 फीसदी अवमूल्यन हुआ है। लेकिन इस मोड़ पर विनिर्माण क्षेत्र में घटी हुई मांग के साथ मामूली गिरावट भी उत्पादन बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है, खासतौर पर विपणनयोग्य वस्तुओं के कारोबार में। वैश्विक स्तर पर जो घटनाक्रम है वह भी इसमें मदद कर सकता है। निजी तौर पर मेरा यह मानना है कि चीन का नया नेतृत्व अर्थव्यवस्था में व्याप्त असंतुलन को कम करने के प्रति काफी गंभीर है।
पुनर्संतुलन के इस प्रयास के तहत ही चीन में वेतनभत्तों में इजाफा होते रहने की उम्मीद है। वर्ष 2011 में विश्व बैंक के तत्कालीन मुख्य अर्थशास्त्री जस्टिन लिन ने अनुमान जताया था कि 8.5 करोड़ रोजगार चीन के तटीय शहरों से दूर जा सकते हैं क्योंकि अब वहां लागत इतनी अधिक बढ़ गई है कि कम लागत वाला विनिर्माण जारी रखना संभव नहीं रह गया है। चूंकि इन उत्पादों की वैश्विक मांग तेज बनी रहेगी ऐसे में उनका उत्पादन या तो चीन के अंदरूनी इलाकों में होने लगेगा या विदेशों में। जाहिर है इनके भारत आने की भी संभावना है। बशर्ते कि हम अपनी बिजली और बंदरगाह संबंधी दिक्कतों को दूर कर लें।
आखिर में, मैं कहना चाहूंगा कि रुपये को लेकर हालिया संकट से भारत ने जिस तरह निजात पाने की कोशिश की है उसे लेकर मैं बहुत निराश नहीं हूं। क्योंकि ऐसा उस वक्त हुआ है जब बाजार की ताकतों का दबदबा था और विदेशी मुद्रा भंडार में से खर्च की सीमित गुंजाइश थी। हालांकि अभी जीत का दावा करना बहुत जल्दबाजी होगी, खासतौर पर तब जबकि तूफानी राजनीतिक माहौल आना शेष है। इसके अलावा हमें उस संकट का भी अंदाजा नहीं है जो धीमे विकास और अवमूल्यित मुद्रा विनिमय की वजह से हमारी वित्तीय व्यवस्था पर मंडरा सकता है। लेकिन विनिमय दर की बढ़ती अस्थिरता यकीनन आज की वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का अपरिहार्य सत्य है।
राजकोषीय नियंत्रण को लेकर ढिलाई बरतने की भारत को काफी कीमत चुकानी पड़ी है। उम्मीद है कि इस दिक्कत को दूर कर लिया जाएगा। इसके अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ वित्तीय समायोजन अधिक सहज होगा अगर हम मुद्रास्फीति के स्तर को अन्य विकासशील देशों के स्तर तक रखने में कामयाब रहे। ऐसे में कहा जा सकता है कि अगले छह महीने का वक्त काफी कठिन होगा। तमाम विदेशी विश्लेषकों की प्रतिकूल टिप्पणियों के बीच भी मैं प्रधानमंत्री की उस टिप्पणी से इत्तफाक रखता हूं कि भारत समय पर पिछले दशक की विकास दर दोबारा हासिल कर सकता है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल 20 सितंबर की बैठक में महंगाई भत्ते में 10 फीसदी वृद्धि के प्रस्ताव पर विचार करेगा। यह वृद्धि इस साल 1 जुलाई से प्रभावी होगी। सूत्र ने कहा कि डीए को बढ़ाकर 90 प्रतिशत करने से सरकार पर 10,879 करोड़ रुपये का अतिरिक्त सालाना बोझ पड़ेगा।
2013-14 में इस वृद्धि से सरकारी खजाने पर 6,297 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। महंगाई भत्ते में दो अंकीय वृद्धि करीब तीन साल बाद होगी। इससे पहले सितंबर, 2010 में सरकार ने महंगाई भत्ते में 10 प्रतिशत वृद्धि की घोषणा की थी, जो 1 जुलाई, 2010 से प्रभावी हुई थी। अप्रैल, 2013 में महंगाई भत्ता 72 से बढ़ाकर 80 प्रतिशत किया गया था। यह वृद्धि इस साल 1 जनवरी से प्रभावी हुई।
आमतौर पर सरकार पिछले 12 माह के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक तथा औद्योगिक श्रमिकों की मुद्रास्फीति के आधार पर महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी का फैसला करती है। जुलाई, 2012 से जून, 2013 के दौरान की औद्योगिक श्रमिकों की खुदरा मुद्रास्फीति के आधार पर महंगाई भत्ते की गणना की जाएगी।
स्वयभू संत आसाराम बापू को अभी न्यायिक हिरासत में ही रहना होगा। राजस्थान उच्च न्यायालय ने बुधवार को उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई के लिए पहली अक्टूबर की तारीख तय कर दी। यह जानकारी पुलिस ने दी है। आसाराम (72) ने उच्च न्यायालय की जोधपुर पीठ के समक्ष 13 सितंबर को जमानत अर्जी पेश की थी। जमानत अर्जी सुनवाई के लिए सोमवार को रखी गई और चूंकि दलील पूरी नहीं हो पाई इसलिए उच्च न्यायालय ने कार्यवाही बुधवार तक के लिए स्थगित कर दी थी। आसाराम की पैरवी करने के लिए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी अदालत में हाजिर हुए।
नाबालिग लड़की से यौन शोषण के आरोपी आध्यात्मिक गुरु आसाराम को जमानत दिलाने के लिए देश के जानेमाने वकील राम जेठमलानी एक तर्क देकर विवादों में है। राम जेठमलानी ने आसाराम को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है।
जोधपुर हाईकोर्ट में आसाराम की जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान जेठमलानी ने करीब सवा घंटे तक बहस की। जेठमलानी ने वही दलीलें पेश की जो जिला एवं सेशन कोर्ट में जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने रखी थी।
जेठमलानी ने उस पीड़िता को ही मानसिक रूप से बीमार बता दिया जिसने आसाराम पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। जेठमलानी ने कहा कि लड़की को लंबे समय से कुछ ऐसी बीमारी है जिसमें महिला पुरूषों के प्रति आकर्षित होती है। उन्होंने कहा कि यह पुलिस जांच का विषय है। जेठमलानी के मुताबिक एफआईआर, क्राइम सीन, लड़की की उम्र और यह पूरा मामला ही तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।
आसाराम की जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 18 सितंबर को होगी। निचली अदालत ने आसाराम को 30 सितंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। आसाराम के सेवादार शिवा की भी न्यायिक हिरासत 30 सितंबर तक बढ़ा दी गई है। दोनों फिलहाल जोधपुर की केन्द्रीय जेल में बंद हैं।
भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को बॉलीवुड की हॉट अभिनेत्री मल्लिका शेहरावत ने गीत गुनगुनाकर जन्मदिन की बधाई थी। मल्लिका का मोदी को जन्मदिन पर बधाई देने का यह एक अनोखा अंदाज है। मल्लिका ने मोदी को बधाई देने वाले गीत का वीडियो यू ट्यूब पर पोस्ट किया और इसका लिंक अपने टि्वटर अकाउंट पर भी पोस्ट किया। मल्लिका ने लिखा प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार मोदी को बधाई।
गौरतलब है कि मल्लिका इससे पहले राजस्थान के उदयपुर में रियलिटी शो `द बैचलोरेट इंडिया- मेरे खयालों की मल्लिका` के प्रचार के के दौरान एक संवाददाता सम्मेलन में मोदी को सर्वाधिक योग्य कुंआरा बताया। शो के प्रचार ट्रेलर को जारी करते हुए मल्लिका (36) ने कहा था कि ये नरेंद्र मोदी हैं। वे स्मार्ट, प्रगतिशील और अक्सर मेरी तरह गलत समझ लिए जाते हैं। सन 1962 में हॉलीवुड अभिनेत्री मर्लिन मुनरो ने तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी के लिए भी हैपी बर्थडे मिस्टर प्रेसीडेंट का गीत गुनगुनाया था।
खुशी मनाइये कि
अब आप जल्द इलेक्ट्रॉनिक केवाईसी करवा पाएंगे। आधार कार्ड जारी करने वाली यूआईडी अथॉरिटी अब ईकेवाईसी के साथ तैयार है।
यूआईडी के मुताबिक बैंक, इंश्योरेंस और म्युचुअल फंड कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक केवाईसी कर सकती हैं। इसके लिए यूआईडी अथॉरिटी सेबी, आईआरडीए और आरबीआई जैसे रेगुलेटरों से बातचीत कर रही है।
यूआईडीएआई के चेयरमैन नंदन निलेकणी के मुताबिक ईकेवाईसी से कंपनियों को डॉक्यूमेंट मैनेज करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही डॉक्यूमेंट वैरिफिकेशन में लगने वाला समय भी खत्म हो जाएगा। यूआईडी अथॉरिटी अब तक 40 करोड़ आधार नंबर जारी कर चुका है और 2014 तक 60 करोड़ लोगों को आधार नंबर जारी करने का लक्ष्य है।
सरकार द्वारा जनता को सस्ते दरों पर दिए जाने वाले सामान की सब्सिडी डायरेक्ट ट्रांसफर के लिए आधार कार्ड (यूआईडी) के साथ लिंक होना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके मार्फत ही सब्सिडी की राशि डायरेक्टर बैंक एकाउंट में ट्रांसफर करने का नियम निर्धारित किया गया है। ऐसे में लोग तेजी से आधार कार्ड सेंटरों में पहुंच रहे हैं।
* आधार से मिलेगा नया मोबाइल कनेक्शन!
आज तक-08-Sep-2013
दूरसंचार विभाग के अधिकारियों ने बताया कि नए नियम आने से खुदरा विक्रेताओं को ग्राहक की अंगुलियों के निशान लेकर इसका यूआईडी कार्ड डाटा से ऑनलाइन मिलान करना होगा. उन्होंने कहा कि इस संबंध में हाल ही में आंध प्रदेश में एक ...
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* घरेलू गैस सिलेंडर लेने से पहले देनी होगी अंगूठा ...
दैनिक भास्कर-08-Sep-2013
पहचान के लिए हॉकर बॉयोमीट्रिक मशीन पर डिलीवरी लेने वाले के अंगूठे का निशान लेगा। मशीन आधार के डाटा से अधिकृत व्यक्ति होने की पुष्टि करेगी, तभी गैस सिलेंडर उसे सौंपा जाएगा। यूआईडी के विशेषाधिकारी आरसी गुप्ता अनुसार, ...
Reliance
बीएसई | एनएसई 18/09/13
अब देखिये रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने मौजूदा संकट से इकोनॉमी के उबर जाने का भरोसा जताते हुए कहा है कि हमें बुरे दौर से आगे देखने की जरूरत है। मुंबई में एक कार्यक्रम में मुकेश अंबानी ने कहा कि भारत को बुरे दौर से आगे देखना चाहिए।
मुकेश अंबानी ने कहा कि भारत को एक सकारात्मक और समग्र सोच की जरूरत है। मुकेश अंबानी को भरोसा है कि तमाम चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए भारत बड़ी शक्ति बनेगा।
मुकेश अंबानी के मुताबिक मैंने महसूस किया है कि चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर आप लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते। इसकी बजाए चुनौतियों से निपटने के लिए अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कीजिए।
प्याज की आसमान छूती कीमतों से आम आदमी कितना परेशान है, शायद इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि प्याज के महंगे होने का जिम्मा सरकार पर नहीं डाला जा सकता है, इसके लिए प्याज कारोबारियों को दोषी ठहराना चाहिए।
वहीं खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने महंगे प्याज के लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराया है। कृषि मंत्री शरद पवार ने तो ये तक कह डाला है कि महंगे प्याज से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है, इससे तो बल्कि किसानों को फायदा हो रहा है।
जी-20 शिखर बैठकों के फैसले तत्परता से लागू हों: चिदंबरम
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की कोटा व्यवस्था में सुधार के निर्णयों पर अमल के प्रति विकसित अर्थव्यवस्थाओं के ढुलमुल रवैए पर चिंता जाहिर करते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज कहा कि जी-20 शिखर बैठकों के फैसले तत्परता से लागू किए जाएं ताकि संगठन पर भरोसा बना रहे।
उन्होंने यहां इक्रियर के एक समारोह में कहा, ज्यादातर विकसित देशों ने अब साफ कर दिया है कि वे बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों (मुद्राकोष, विश्वबैंक) की संचालन व्यवस्था व उनके पूंजीगत ढांचे में सुधार के प्रस्तावों पर आगे कदम बढाने को तैयार नहीं है। इससे जी-20 की विश्वसनीयता प्रभावित हुई है और अन्य मामलों में आगे बढ़ना भी मुश्किल हो गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि वैश्विक व्यवस्था के संचालन में जी20 की अर्थपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करने के लिए यह जररी है कि जी-20 का दृष्टिकोष्ण सीधा और सटीक हो तथा वह खास कर आर्थिक एवं वित्तीय मामलों में कुछ अलग प्रभाव छोड़ने वाला हो।
उन्होंने कहा, महत्वपूर्ण यह है कि जी-20 बैठकों में लिए गए फैसलों को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। उन्होंने कहा, दिसंबर 2013 में बाली में होने वाली विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक के मद्देनजर जी-20 के नेताओं ने विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों से लचीलापन दिखाने का आह्वान किया है ताकि बाली बैठक सफल हो।
बाजार को अमेरिकी फेडरल रिजर्व की बैठक में क्यूई3 पर फैसले का इंतजार है। दोपहर 1:10 बजे, सेंसेक्स 16 अंक चढ़कर 19820 और निफ्टी 6 अंक चढ़कर 5856 के स्तर पर हैं। मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में हल्की बढ़त है।
रियल्टी, एफएमसीजी, हेल्थकेयर, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, बैंक, ऑयल एंड गैस, कैपिटल गुड्स 0.8-0.2 फीसदी मजबूत हैं। पीएसयू शेयरों में हल्की बढ़त है।
मेटल शेयर 0.5 फीसदी और ऑटो शेयर 0.2 फीसदी गिरे हैं। आईटी, तकनीकी, पावर शेयरों पर भी दबाव है।
निफ्टी शेयरों में टाटा पावर, डीएलएफ, एनटीपीसी, आईडीएफसी, एचयूएल, डॉ रेड्डीज, एसबीआई, मारुति सुजुकी, ग्रासिम, बैंक ऑफ बड़ौदा, कोल इंडिया, सिप्ला, एक्सिस बैंक 2.5-1 फीसदी चढ़े हैं।
आंध्रप्रदेश के वाइल्डलाइफ विभाग ने आईटीसी के पलवांचा पेपर यूनिट को मंजूरी दे दी है। आईटीसी में 0.6 फीसदी की मजबूती है।
छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में नक्सली हमले की वजह से एनएमडीसी का खनन का काम रुक गया है। हालांकि, कंपनी ने सफाई दी है कि हमले से उत्पादन पर असर नहीं पड़ा है। एनएमडीसी के शेयरों में 3.25 फीसदी की गिरावट है।
बीएचईएल, एचडीएफसी, पावर ग्रिड, केर्न इंडिया, हीरो मोटोकॉर्प, रिलायंस इंफ्रा, सेसा गोवा, जेपी एसोसिएट्स, एमएंडएम, एचसीएल टेक जैसे दिग्गज 2.75-1 फीसदी कमजोर हैं।
सूत्रों के मुताबिक सीसीआई ने रिलायंस पावर के तिलैया यूएमपीपी पर फैसला टाल दिया है। रिलायंस पावर करीब 1 फीसदी कमजोर है।
यूरोपीय बाजारों ने सुस्ती के साथ शुरुआत की है। सीएसी और एफटीएसई पर हल्का दबाव है। वहीं, डीएएक्स में मामूली बढ़त नजर आ रही है।
एशियाई बाजारों में निक्केई 1.3 फीसदी चढ़ा है। स्ट्रेट्स टाइम्स 0.5 फीसदी और शंघाई कंपोजिट 0.3 फीसदी मजबूत हैं। ताइवान इंडेक्स और कॉस्पी करीब 0.5 फीसदी गिरे हैं।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये हल्की मजबूती आई है। फिलहाल रुपया 63.11 के स्तर पर कारोबार कर रहा है। रुपया कमजोरी के साथ 63.42 पर खुला था।
FM P Chidambaram for expeditious implementation of G-20 decisions
Concerned over the unwillingness of developed economies to push IMF quota reforms, Finance Minister P Chidambaram today said the decisions of the G-20 meeting should be implemented expeditiously to ensure credibility of the organisation.
"Most advanced countries have now clearly indicated their unwillingness to move ahead on International Financial Institutions (IMF,World Bank) governance and capital reform. This has hampered the credibility of G20 and makes it difficult to progress on other issues as well," he said at an ICRIER event here.
The Minister said to be able to play a meaningful role in the global governance, the G-20 agenda should be sharper and focused only on those issues on which it can make a distinctive contribution, particularly, on economic and financial matters.
"Finally it is important to ensure that the decisions taken in G20 meetings are carried forward expeditiously," he said.
"In the backdrop of the upcoming WTO ministerial in Bali in December 2013, G20 leaders have called on all WTO members to show flexibility so as to achieve a successful conclusion in Bali," he said.
In the recent G-20 Summit, Prime Minister Manmohan Singh had emphasised the need for early completion of the International Monetary Fund (IMF) quota reforms to increase representation of the developing countries in the multi-lateral body.
Aimed at improving the voting share of developing countries and achieving a better representation on the IMF Board, the reform of the international financial institutions has been a key part of G-20 agenda.
G-20 is a club of developed and emerging economies.
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* The Next Fed Chairman's Global Clout
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The U.S. Federal Reserve remains the most powerful central bank in the world. Its policy actions reverberate in every corner of the globe, ...
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'World War Z' and the Fed
Houston Chronicle-8 hours ago
Among biologists, it's called "the extinction problem." It happens when a species suffers a major disaster, one that kills off most of its population.
* Will US Federal Reserve ease back on stimulus?
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Eyes across the globe will be trained on Washington on Wednesday as the Federal Reserve concludes its two-day meeting. US Federal ...
* PRECIOUS-Gold extends losses as Fed stimulus decision looms
Reuters-3 hours ago
The Fed is expected to begin its long retreat from ultra-easy monetary ... the worldlaunched stimulus measures to support their economies.
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* Oil rises toward $106 ahead of Fed policy decision
Fort Worth Star Telegram-4 hours ago
Oil rises toward $106 ahead of Fed policy decision. Posted Wednesday, Sep. 18, 2013 Updated comments Print Reprints. Share. By PAMELA SAMPSON The ...
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GLOBAL MARKETS-Wager Fed takes one small step, no giant leap
Reuters-3 hours ago
Fed expected to taper stimulus in modest steps ... were vulnerable to any hint of hawkishness fromthe world's most powerful central bank.
* Indian market to benefit if US Fed hits the red button, withdraws QE?
Economic Times-2 hours ago
Indian market to benefit if US Fed hits the red button, withdraws QE? ... focusing on who are the beneficiaries of an improving world economy.
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* Robert Solomon, chief international economist for the Fed, dies at 92
Washington Post-8 hours ago
He became director of the Fed's international finance division and an ... of 20" nations negotiating world monetary reform in the early 1970s.
* European shares hold near five-year highs on Fed taper day
Reuters-2 hours ago
Fed stimulus wind down expected at 1800 GMT ... Zara owner Inditex, the world'slargest clothes retailer, rose 1.1 percent after saying sales at ...
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European Factors to Watch-Shares to gain, Fed move seen moderate
Reuters UK-4 hours ago
Nilekani may contest LS seat from Karnataka on Cong ticket
Congress Candidate, General Elections 2014 — that could soon be the new and unique identity of Nandan Nilekani, the boss of India's UID project.
I am first & foremost an American: Nina Davuluri
McD's ousted MD Vikram Bakshi now in loan-default mess
Vidya Bhushan Rawat shared The Times of India's photo.
salute to brazil and its political leadership. Shame on spineless indian leadership. One cant speak while other is dying to get visa from them.
#Brazil makes a point about honor.
Mad as hell over American spying activities including monitoring her personal communications, Brazil's President #DilmaRousseff delivers a stunning rebuke to US President Obama by cancelling a much-anticipated state visit to Washington DC.
http://timesofindia.indiatimes.com/world/us/Brazil-President-snubs-Obama-over-NSA-spying-cancels-US-visit/articleshow/22684153.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral
जनज्वार डॉटकॉम
बंदूक हिंसा का प्रतीक है या शांति का. अगर यह हिंसा का प्रतीक है, तो स्वाभाविक है कि बंदूक पकड़ने वाले सभी हिंसक होंगे. चाहे बंदूक पकड़ने वाला पुलिस व सेना की वर्दी में हो या नक्सली लिबास में. यह कैसे संभव है कि सुरक्षा बलों के बंदूक से शांति निकले और माओवादियों की बंदूक से हिंसा...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/69-discourse/4340-bandook-se-chalata-loktantra-by-glaidson-dungung-for-wwwjanjwarcom
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Nandan Nilekani likely to contest a Lok Sabha seat from Karnataka on Congress ticket
By Soma Banerjee, ET Bureau | 18 Sep, 2013, 06.46AM IST
106 comments |Post a CommentNandan Nilekani may contest polls on Congress ticketNilekani, considered close to the Nehru-Gandhis, was handpicked by Rahul Gandhi to join the administration after the Congress-led UPA-2's 2009 election victory.
Editor's Pick
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Nile Ltd.
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NEW DELHI: Congress Candidate, General Elections 2014 — that could soon be the new and unique identity of Nandan Nilekani, the boss of India's unique identification (UID) project. Talks with the Congress leadership are at an advanced stage and the ex-Infosys co-chairman is all but certain to get a party ticket, several people familiar with the talks told ET. The constituency is likely to be from Karnataka, Nilekani's home state.
Nilekani, an ET Award winner for Policy Agent of the Year in 2011 and a member of the ET Awards Jury this year, said, "Although there is no final decision as yet, it is about making a choice at this stage. Getting into the mainstream and becoming one who can initiate change for the larger public good." The comments came during a recent wide-ranging interaction with ET on his future plans.
Senior Congress leaders who spoke on the condition they not be identified told ET both Nilekani's and the party leadership's preference is that the UID boss stand as aLok Sabha candidate. "Getting elected by popular vote will give him the extra legitimacy that needs to make a difference as a technocrat-politician", a senior Congress leader said.
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But the Rajya Sabha route is also not being ruled out, the same leader said, adding a final call will be taken after the assembly elections in November. "That's when we get serious about candidate selections", the leader said.
Congress leaders in Karnataka were enthused about the prospect, saying they are aware of the developments. One state leader said who did not want to be named said, "Nilekani would be a shoo-in if he chooses to contest from Bangalore South". This is a constituency dominated by "upper-class professionals". Nilekani has a home in the posh Koramangala area that is part of the Bangalore South constituency. This seat is now held by the BJP's Ananth Kumar.
Significantly, Nilekani had turned down NRN Narayana Murthy's request in June to get back to InfosysBSE -0.25 % after Murthy had assumed leadershiop of the IT company.
Nilekani, considered close to the Nehru-Gandhis, was handpicked by Rahul Gandhi to join the administration after the Congress-led UPA-2's 2009 election victory. Prime MinisterManmohan Singh gave the high profile entrepreneur a cabinet rank appointment and had tasked him to plan and lead the UID project. That decision was near-universally feted as a bold and correct move.
Later, in January this year, he was tasked to develop the Direct Benefits Transfer (DBT) project that's considered to be a Sonia Gandhi-backed UPA-2 initiative. DBT involves transferring cash to welfare beneficiaries via an identification system based on UID and through technological platforms tailored for India's vast rural areas.
Almost every significant political speech by Sonia Gandhi mentions the DBT scheme. "It's a key tool in her inclusive growth approach, a Congress leader said.
Nilekani, the leader said, is therefore a key strategist in Congress plans anyway. "His induction as a candidate will make his current and future contributions even more potent", a Congress leader said.
Senior officers in the government, speaking on the condition of anonymity, said Nilekani's 4-plus years in the system has shown him to be fast learner and a person who can work the system despite bureaucratic opposition. Nilekani's UID project had faced several bureaucratic challenges, from sections of the Planning Commission as well as the home ministry. But the general assessment has been that Nilekani had shown the requisite toughness in the face of such opposition.
Indian market to benefit if US Fed hits the red button, withdraws QE?
By ECONOMICTIMES.COM | 18 Sep, 2013, 01.58PM IST
Most experts are of the view that the US Fedwon't take a hawkish stance on QE. They expect a tapering of about $10 billion, something which they say has been factored in by the markets.While most analysts believe a hawkish stance by the Fed may be detrimental for the markets, Jim Walkers feels it would result in EMs gaining
Editor's Pick
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While most analysts believe that a hawkish stance by the US Fed may be detrimental for the markets, Jim Walkers of Asianomics feels that such a stance would in fact result in emerging markets gaining, as it will be a statement from the Fed saying that the globaleconomy is recovering.
Here's what Jim Walkers says, and also what stance other analysts and brokerage houses have on the impact of the keenly awaited decision from the US Fed.
Jim Walker, MD and founder, Asianomics
We don't expect the US Fed to surprise the markets. The only surprise from US Fed today can be that there is no tapering of theQE program. It is expected that they'll announce a slow cutting back of the program. That they'll cut it by $10 billion seems to be the consensus. We don't expect the US Fed to announce a timeline for QE tapering.
This view comes as US economic data is very mixed. If the Fed takes a hawkish stance, emerging markets will go up. The reason it would go up is that we would get away from all this easy money, and start focusing on who are the beneficiaries of an improving world economy. Most of emerging countries are exporting markets, and it will be a good news for them if there is much quicker reduction in QE.
Standard Chartered
We believe QE tapering will be light as US employment data has been disappointing. US economy is recovering and has become a bright spot.
We expect QE tapering of $10 billion starting this month. What needs to be watched is whether US Fed takes a dovish stance or otherwise. But even with tapering, global liquidity is abundant. We see some reallocation of funds to other asset classes post tapering.
Maury N Harris, UBS
We continue to expect the FOMC to announce a modest $10 billion tapering of its $85 billion per month quantitative easing programs.
The Fed meet is going to be very crucial in deciding the market direction. There are two situations to the whole thing, a) either the Fed gives a very dovish statement based on the US jobs data that it has seen, and possibly postpone these events which will give a fillip to not only the Indian markets but markets across the globe. In that sense, you might have a relief rally on the markets ... the Bank Nifty will really zoom off from the levels that we are seeing right now.
On the other hand, if there is a $10 billion kind of a drawdown, it is already gestated by the markets which would effectively mean that there might be some amount of profit booking or correction that one might see on the markets. But again, from lower levels, you might have some amount of value buying happening in the Indian equity markets.
Mayuresh Joshi, Angel Broking
Any adverse reaction and you might have a sharp rally or a sharp fall into the markets.
The Next Fed Chairman's Global Clout
Raquel Marín
By ESWAR S. PRASAD
Published: September 16, 2013
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REPRINTS
The U.S. Federal Reserve remains the most powerful central bank in the world. Its policy actions reverberate in every corner of the globe, something no other central bank can claim. Even the hint of a "taper" — the withdrawal of easy money policies — has roiled emerging markets. The prospect of rising interest rates in the United States has led investors to pull back from riskier investments in those countries. Emerging markets like Brazil, India and Indonesia are facing plunging currencies and declining stock markets.
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Summers Pulls Name From Consideration for Fed Chief(September 16, 2013)
Low interest rates in the United States had led investors to look to emerging markets for better returns on their money, fueling booms in equity and real estate markets as well as higher inflation in some countries. For the previous two years, emerging markets had been complaining about how these inflows fueled by cheap money in the United States caused their currencies to appreciate too rapidly, hurting their export competitiveness. The fact that those same currencies are now tumbling has led to the opposite complaint — that the Fed should back off more slowly from its earlier policies and better communicate its intentions to financial markets.
Given the global impact of the Fed's actions, the choice of a replacement for Ben Bernanke as chairman of the Federal Reserve is being watched with keen interest. No matter who is chosen, there are important changes in store for central banks and financial markets the world over.
Despite the global economic crisis, financial markets are now more closely connected then ever before. China, India and other major economies have continued removing restrictions to capital flows, opening up their markets to cross-border investment. Given this increased mobility, actions by any of the major central banks have effects well beyond their own national borders.
Moreover, in the aftermath of the crisis, central banks have become even more important to economic management, taking on much of the burden of controlling inflation, improving financial stability and promoting growth. This is a difficult balancing act in the best of times. It becomes virtually impossible when fiscal and other policies are working at cross-purposes.
In the United States, for instance, short-term fiscal tightening (along with the uncertainty associated with deficit and debt-ceiling negotiations that repeatedly go down to the wire) has hobbled the recovery. Meanwhile, little has been done to tackle the longer-term fiscal problems, especially entitlement spending. The focus on short-term austerity has limited productivity-enhancing expenditures in such areas as infrastructure and education.
In India, the government has been unwilling to undertake politically unpopular reforms to tackle large budget deficits and structural problems such as stifling labor-market regulations. This has left it to the makers of monetary policy to do all the heavy lifting. Other emerging markets face similar issues.
The reliance on central banks to make up for the failings of other policies has created inevitable international tensions. The right monetary policy for one country might not necessarily be what is good for another. Unlike fiscal policies, whose effects tend to stay mostly domestic, monetary policies do affect currency values and financial markets in other countries through cross-border financial flows.
Whoever takes over from Bernanke, the reality is that the Fed chairman has a mandate to focus only on domestic objectives. Fair enough: No central bank in the world has anything but domestic objectives in its mandate. But when the Fed acts, it matters to the world in a way that no other central bank's actions do.
In a report by a committee of academics and former central bankers in which I participated, we argued that the Fed and a small group of central banks from both advanced and emerging market economies should hold regular meetings and issue a report on their monetary policy intentions. Even if this procedure only exposed mutual inconsistencies in policy, it would be a way to bring broader pressure on politicians to stop relying on the crutch of monetary policy and prod them to take politically unpopular measures to improve productivity and the prospects of long-term growth while making global capital flows more stable.
So who would the rest of the world vote for to head the most important central bank? Now that Lawrence Summers has withdrawn from the race, the presumptive front-runner is Janet Yellen. Many central bankers view her as someone who is empathetic to the spillover effects of U.S. policies, someone who has enough credibility to soothe financial markets and ably steer the Fed.
In any event, no matter who gets the job, what many of the world's central bankers are hoping for is a Fed that can go back to the more modest objectives of maintaining low inflation and financial stability. On that, at least, there is certainly international agreement.
Eswar Prasad is a professor of economics at Cornell University and a senior fellow at the Brookings Institution. He is the co-author with M. Ayhan Kose of "Emerging Markets: Resilience and Growth Amid Global Turmoil."
http://www.nytimes.com/2013/09/17/opinion/global/the-next-fed-chairmans-global-clout.html?_r=0
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