Thursday, May 9, 2013

भूमि समस्या की वजह से ओपन कास्ट माइनिंग को खतरा,संकट में ईसीएल!

भूमि समस्या की वजह से ओपन कास्ट माइनिंग को खतरा,संकट में ईसीएल!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कोलइंडिया की मुसीबतें खत्म नहीं हो रही है। कोयला आपूर्ति का दबाव लगातार बड़ता जा रहा है। लेकिन उत्पादन बढ़ाने के उपाय कारगर नहीं ​​हो रहे हैं।ईस्टर्न कोलफील्ड्स के आसनसोल रानीगंज इलाके में जल्दी से कोयला निकालने के लिए ओपनकास्ट माइनिंग विधि अपनायी जाती है। इसके लिए गैर सरकारी कंपनियों को ठेका दिया जाता है। काम करने वाली कंपनियों को खनन के लिए जरुरी मशीनें और अपने कर्मचारियों के लिए जगह चाहिए होती है। इसके लिए जमीन चाहिए। पर जमीन का भारी टोटा है। गैरसरकारी कंपनियां अब इस काम में हाथ लगाना नहीं चाहती। जो कंपनियां काम शुरु कर चुकी हैं, वे भी भागने के फिराक में हैं।​

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​अभी कल ही मुख्यमंत्री राज्यसरकार के कार्यकाल के दो साल पूरे होने के बाद औद्योगिकीकरण अभियान की कमान अपने मजबूत हाथों में लेते हुए  उद्योगजगत को भरोसा दिला रही थी कि भूमि अधिग्रहण औद्योगिकीकरण की राह में बाधा न होगा। पर कोयलांचल में अंडाल की विमाननगरी भूमि अधिग्रहण की पेंच में ही फंसी है और अब कोयला खानों की बारी है। ईसीएल जो जगह देती है, वहां भारी मसीनों को रखना ही संभव नहीं है। कम जगह की वजह से दुर्घटनाएं भी हो रही है।ईसीएल असहाय है। राज्य सरकार की मदद के बिना यह समस्या सुलझ नहीं सकती और वहां से मदद नहीं मिल रही है। अभी पंजाब की एक कंपनी ने अपना काम समेटकर मशीने सोनपुर स्थानांतरित कर दी।​

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​इस कंपनी के महाप्रबंधक बलबीर सिंह के मुताबिक ठेका देते हुए ईसीएल ने भरोसा दिया था कि जमीन मिलेगी। जो अभीतक नहीं मिली है और न मिलने की कोई संभावना है। इसलिए काम समेटने के अलावा कोई चारा नहीं है। मशीनों और कर्मचारियों को जोखिम में डालकर काम करना मुश्किल  है।​


गौरतलब है कि ईसीएल के सामने सबसे बड़ी समस्या भूमिगत आग से जूझते हुए ओपनकास्ट विधि से ज्यादा से ज्यादा कोयला निकालने की है। लेकिन राज्य सरकार का इस ओर ध्यान है ही नहीं।झरिया और रानीगंज कोलफील्ड इलाके में बसे लाखों लोगों को कहीं और बसाने और भूगर्भ खदानों में लगी आग को बुझाने के साथ-साथ इस क्षेत्र के विकास को देखते झरिया एक्शन प्लान को काफी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। इस योजना का प्रस्ताव 1999 में दिया गया था। सबसे पहले मंजूरी के लिए इसे कोयला मंत्रालय को भेजा गया।पिछले साल राज्य सरकार ने भी इसे मंजूरी दे दी। इस योजना के तहत बीसीसीएल और ईस्टर्न कोल लिमिटेड (ईसीएल) द्वारा पुनर्वास और बुनियादी सुविधाओं का विकास करने के साथ ही आग बुझाने के लिए लगभग 9657 करोड़ रुपये खर्च किए जाने की योजना है। यह किसी भी सरकारी कंपनी द्वारा शुरू की जाने वाली सबसे बड़ी पुनर्वास व मुआवजा योजना है जो 1999 से ही अटकी पड़ी थी। बीसीसीएल के अनुसार इसे पूरा करने में 10 वर्षों का समय लगेगा।योजना के तहत करीब 79 हजार परिवारों के पांच लाख लोगों को झरिया के खतरनाक क्षेत्र से निकालकर पुनर्वासित किया जाएगा।

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​यह समस्या कितनी भारी है, इसे इस तरह समझिये  कि ईसीएल का ओपनकास्ट माइंनिंग से सालाना दस लाख टन कोयला निकालने का लक्ष्य है,जो खटाई में पड़ गया है।


कोल इंडिया लिमिटेड की सहयोगी कंपनी ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) का कोयला उत्पादन वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान 10.9 फीसदी बढ़ा। साथ ही उठाव में भी अच्छी वृद्धि हुई।ईसीएल के निदेशक (तकनीक) नीलाद्री राय ने कहा, 'इस साल हमने अपने लक्ष्य से अधिक उत्पादन किया। कामकाज के पुनर्गठन से उत्पादन बढ़ा है। इसके तहत कुछ छोटे खदानों को बंद किया गया तथा कुछ मौजूदा परियोजनाओं का विस्तार किया गया है।'वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान ईसीएल का कोयला उत्पादन 10.9 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 3.39 करोड़ टन, जबकि उठाव 16 फीसदी बढ़कर 3.58 करोड़ टन पर पहुंच गया। हालांकि कोल इंडिया लिमिटेड की सभी आठ सहयोगी कंपनियों का सम्मलित कोयला उत्पादन वित्त वर्ष 2012-13 में अपने लक्ष्य से कम रहा।


ये तो आंकड़े हैं। जमीनी समस्या है कि अब ये हालात नहीं बदले तो आंकड़े  बनाने की भी गुंजाइश नहीं बचेगी।लेकिन यह भी सच है कि अगर राज्य सरकार के सहयोग से जमीन का मसला सुलझ गया, तो ईसीेल के लिए उत्पादन लश्क्ष्य पूरा करना ज्यादा मुश्किल भी न होगा।


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