चिटफण्ड घोटाला : मैं पूछता हूँ मेरे देश की संसद मौन क्यों है?
चिटफण्ड कम्पनियाँ राजनेताओं, बाहुबलियों और धनपशुओं के लिये स्विस बैंक का काम कर रही हैं
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
देश भर में सड़कों से लेकर संसद तक खूब हंगामा बरपा है। ऐसा माहौल है समझिये कि भ्रष्टाचार के खिलाफ क्रान्ति कभी भी होने वाली है, और दसों दिशाओं में मानसून आने से पहले से घोटालों की घन घटायें उमड़- घुमड़ रही हैं। कोयला ब्लॉक से लेकर किस्म- किस्म के घोटालों की चर्चा से दिन प्रतिदिन संसदीय कार्यवाही ठप हो रही है। राजकाज ठप है। सिर्फ वित्तीय विधेयकों के पास करने की सम्मति है। रोज-रोज अभूतपूर्व हंगामा। इस परिदृश्य में यह कम हैरतअंगेज नहीं है कि देश भर में करोड़ों लोगों की जमा पूँजी हड़पने वाली चिटफण्ड कम्पनियों के गोरखधंधे को लेकर कोई स्थगन प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव की खबरें नहीं आ रही हैं। प्रश्नकाल और शून्यकाल में भी सन्नाटा पसरा है। आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है? कोई राज्य बचा नहीं है इस गोरख धंधे से। बंगाल में सौ से बड़ी कम्पनियाँ हैं तो सैकड़ों छोटी कम्पनियाँ। दूसरे राज्यों में भी इस तन्त्र का जमकर खुलासा होने लगा है। फिर भी खामोशी?
वित्तमन्त्री की पत्नी नलिनी को शारदा समूह से 42 करोड़ के भुगतान का मामला सामने आया। सेबी और राष्ट्रपति को पटाने की कोशिश में चालीस करोड़ खर्च हुये। केन्द्रीय एजंसियाँ चुपचाप हैं। अकेले बंगाल में कम से कम पन्द्रह लोगों ने आत्महत्या कर ली है। हत्यायें तक हो रही हैं। माओवादियों, आतंकवादियों, अलगाव वादियों, राष्ट्रद्रोहियों, अल्फा, जिहादियों,कोयला माफिया से लेकर मुम्बई के अण्डर वर्ल्ड तक के इस धंधे से तार जुड़े होने का खुलासा हो रहा है। यह महज आर्थिक अपराध का मामला तो है नहीं या किसी एक राज्य के कानून व्यवस्था का मामला भी नहीं है, जो संसद में उठाया ही नहीं जा सकता। राष्ट्रीय सुरक्षा, प्रतिरक्षा, आन्तरिक सुरक्षा, एकता और अखण्डता से जुड़ा मसला हो गया यह। नागरिक और मानवाधिकारों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन हो रहा है और फिर भी बात बेबात पर हंगामा बरपाने वाले हमारे जनप्रतिनिधि खामोश हैं। क्यों?
दरअसल बात खुलेगी तो खुलती चली जायेगी। भेद खुलेंगे तो सबकी बोलती बन्द हो जायेगी, ऐसा मामला है यह। उत्तर प्रदेश में अस्सी के दशक से चिटफण्ड साम्राज्य का बोलबाला है। सामाजिक बदलाव और सोशल इंजीनीयरिंग के पीछे वहाँ चिटफण्ड हैं। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक में चिटफण्ड कम्पनियाँ राजनेताओं, बाहुबलियों और धनपशुओं के लिये स्विस बैंक का काम कर रही हैं। बेहिसाब संपत्ति और आयकर संपत्तिकर घोटाला, प्रोमोटर राज के पीछे यह चिटफण्ड कारोबार है।सहारा इंडिया, लालिमा फाइनेंस, कुबेर, जेवीजी, राप्ती, सोप्ती, अनिल, चंदू, गुडिया, हरियाली जैसे ऐसे कुछ नाम है जिन्होंने लोगो के शरीर से पैसे के रूप में उनका खून निकाला है। इन कम्पनियों ने बड़ा बनने के लिये लाखों निवेशकों को इस बात के लिये तैयार किया कि वह उन पर विश्वास करें और उनके यहाँ उस विश्वास के साथ अपने जीवन की जमा पूँजी रख दे जो उन्होंने खाता खोलने के लिये कम्पनी पर दिखाया था| लेकिन सम्भवतः उन लाखों निवेशकों को ये पता ही नहीं था कि वह अपने जीवन की गाढ़ी कमाई ऐसे लोगों के हाथ में दे रहे हैं जो कभी वापस नहीं आयेंगी और उनके धन को यही कम्पनियाँ अलग-अलग स्कीमों में लगाकर पैसे की तरह उन्हें भी जीवन भर घुमाती रहेंगी।
तो इस वक्त कांग्रेस शासित असम और महाराष्ट्र, वाम शासित त्रिपुरा, राजग शासित बिहार और झारखंड, तृणमूल शासित बंगाल में यह मामला तांडव का आकार ले चुका है। पूर्वोत्तर में सारी गतिविधियाँ चिटफण्ड आधारित है। सत्ता दलों के मन्त्री, सांसद से लेकर आम कार्यकर्ता चाँदी काटते रहे हैं। अराजनीति भी चिटफण्ड के दम पर। राजनीति से दूर दूर तक जिनका रिश्ता नहीं है, चिटफण्ड के वरदहस्त से वे संसद तक पहुँच गये। कोई आरोप लगायेगा तो किस पर लगायेगा?
यह किसी मनमोहन सिंह, बंसल, चिदंबरम या अश्विनी कुमार को अकेले घेरने का मामला नहीं है। घेराव हुआ तो रथी-महारथी तमाम घिर जायेंगे।
बंगाल में स्वयं मुख्यमन्त्री अब आरोपों के घेरे में हैं। तो पिछली सरकार से लेकर केन्द्र सरकार और केन्द्रीय एजेन्सियों की मिलीभगत भी सामने आ रही है। उच्च न्यायालय में सीबीआई जाँच के लिये चार चार मामले लम्बित हैं। इनमें से
एक मामले में पूर्व मुख्यमन्त्री और पूर्व वित्त मन्त्री को सीबीआई जाँच के दायरे में लाने की माँग की गयी है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने करोड़ों रुपये के शारदा चिटफण्ड घोटाले की जाँच केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की माँग सम्बंधी जनहित याचिकाओं की सुनवाई चल रही है। फैसला जल्द ही आ जायेगा। मुख्य न्यायाधीश अरण मिश्रा और न्यायमूर्ति जयमाल्यो बागची की खण्डपीठ जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। अदालत ने इन बातों पर गौर किया कि सीबीआई जाँच कराने के लिये चार याचिकायें दायर की गयी हैं और अदालत के पूर्व निर्देशानुसार पश्चिम बंगाल सरकार ने पहली याचिका के सम्बंध में अपना शपथपत्र पेश कर दिया है। अदालत ने राज्य सरकार से इस बीच मामले की सीबीआई जाँच कराये जाने की माँग करने वाली अन्य तीन याचिकाओं में उठायी गयी बातों पर एक पूरक शपथपत्र पेश करने का निर्देश दिया है।
गौरतलब है कि सीबीआई टीम गुवाहाटी पहुँच चुकी है और त्रिपुरा सरकार ने भी सीबीआई जाँच के लिये आवेदन किया हुआ है। पूरे त्रिपुरा में चिटफण्ड कम्पनियों के खिलाफ गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती अभियान चल रहा है। ऐसा अभियान बिहार में भी शुरु हो चुका है। हालाँकि नीतीश कुमार ने अभी तक सीबीआई जाँच की माँग नहीं की है। ममता बनर्जी, तरुण गोगोई और माणिक सरकार मुखर हैं। लेकिन नीतीश कुमार और नवीन पटनायक समेत बाकी राज्यों के मुख्यमन्त्रियों ने चुप्पी साध ली है। ममता ने सीबीआई जाँच के खिलाफ केन्द्र का तख्ता तक पलट देने की धमकी दी है। दूसरी ओर, चिटफण्ड घोटाले को लेकर वामदलों और तृणमूल कांग्रेस में जारी वाक्युद्ध के बीच बुद्धदेव भट्टाचार्य ने मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी पर 'झूठ' फैलाकर इस प्रकरण में उनका नाम घसीटने का प्रयास करने का आरोप लगाया और कहा कि केवल सीबीआई जाँच से सच सामने आ सकता है। भट्टाचार्य ने आश्चर्य जताते हुये कहा, 'मैं दस साल तक मुख्यमन्त्री था। अगर कोई मेरे साथ केाई तस्वीर खींच ले तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। इसका यह मतलब नहीं कि मैंने उस व्यक्ति से धन लिया है। क्या हमने इन कम्पनियों की किसी शाखा की अध्यक्षता के लिये अपनी पार्टी के नेताओं को चिटफण्ड फर्मों में डाला है?' उन्होंने कहा कि बड़े बड़े भाषण देने के बजाय सीबीआई जाँच होने दीजिये। सीबीआई जाँच ही इस मामले में सच सामने ला सकती है। बुद्धदेव का ऐसा कहना गलत नहीं है। क्योंकि चिटफण्डिये राजनेताओं का दुरुपयोग करने के माहिर खिलाड़ी हैं। बताया जाता है कि कुछ दिन पहले ग्वालियर के एक चिटफण्डिये ने अपने एक डमडमडिगा टाइम्स टाइप के अखबार के साथ एक केन्द्रीय मन्त्री और काँग्रेस की मेहरबानी से राज्यसभा पहुँचे बिहार के एक चर्चित दलित नेता के साथ अपने और अपने एजेन्टों के फोटो खिंचवाये थे।
गौरतलब है कि शारदा चिटफण्ड घोटाला मामले में लेफ्ट फ्रन्ट का एक प्रतिनिधिमण्डल सीबीआई जाँच का दबाव बनाने की खातिर राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री को 9 मई को ज्ञापन सौंपेगा।
इतना महत्वपूर्ण मामला है तो इन दलों के सांसद संसद में क्यों खामोश हैं? क्यों चुप हैं अपने- अपने राज्य में जनता के बीच कुरुक्षेत्र का मैदान बनाने वाले कांग्रेसी, तृणमूलिये, भाजपाई और दूसरे पाक साफ दलों के सांसद?
मुम्बई में सरकार और पुलिस तक में चिटफंडिये हैं। कोयलांचलों में चिटफण्ड का अबाध कारोबार है। खुलासा होने लगा तो खाल किसी की नहीं बचने वाली। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में मकड़ी के जाल की तरह फैले इन चिट फण्ड कम्पनियों पर फिलहाल दोनों राज्यों की सरकारों का कोई ध्यान नहीं है। शिवराज के राज में बड़ा स्कैम हुआ, उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया| सीबीआई जाँच तक बात पहुँची लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी भी बड़े से लेकर छोटे कई ऐसे धन्धेबाज़ है जो आम जनता का रोजाना थोड़ा-थोड़ा खून चूस रहे हैं पर सरकार इस पर कुछ नहीं कर रही। भारत में चिटफण्ड कम्पनियों की बयार दक्षिण से बही थी लेकिन उत्तर आते-आते ये लोगो की भावनाओं से खेलने वाली और उनके जीवन भर की कमाई को गायब करने वाली बन गयी। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दो ऐसे राज्य है जहाँ की जनसँख्या ऐसे कामों के लिये मुफीद मानी जाती रही है।
पिछले दिनों मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के ग्वालियर बेंच के जज न्यायाधीश एस के गंगेले और न्यायाधीश ब्रज किशोर दुबे की खण्डपीठ ने याची धर्मवीर सिंह और अन्य बनाम भारत सरकार और राज्य की याचिका 3332, 2010 पर सुनवाई करते हुये कहा कि राज्य और सरकार याचिकाकर्ताओं के हितों को सुनिश्चित करें। धर्मवीर सिंह और अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुये उच्च न्यायालय की ग्वालियर बेंच ने कहा था कि जनता के हितों की रक्षा करना राज्य सरकारों का काम है। सरकारें इस मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दे रही जिसकी वजह से निवेशकों का हित प्रभावी हो रहा है।
उच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश निष्पक्षो के हितों का संरक्षण अधिनियम 2000 सेक्शन 58B (5&5A) & 58C ऑफ आरबीआई एक्ट, 1934 और सेक्शन 4,5, और 6 ईनामी चिट और पैसे स्कीम धारा 1978 के तहत कम्पनी के संचालकों के खिलाफ सेक्शन 3 (1 ) , 3 (2 ) 3 (4 ) और 6 के तहत करवाई की जायें। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की कड़ी आलोचना करते हुये कहा था कि सरकार ऐसी कम्पनियों पर कोई भी कार्रवाई नहीं कर रही है बल्कि प्रदेश और देश में मकड़े के जाल की तरह फैली इन बोगस और फ्रॉड कम्पनियों की संरक्षक बनी हुयी है। उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण की जाँच के लिये सीबीआई जाँच के आदेश दिये हैं। साथ ही राज्य सरकार को भी इस मामले में कठघरे में खड़ा करते हुये मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ भी तीखी टिप्पणी की थी।
उधर बंगाल में सीबीआई जाँच की आँच से बचना मुश्किल जानते हुये भी बेपरवाह दीदी का फेसबुक पर सीबीआई को लेकर जनमत संग्रह तेज हो गया है!
ममता ने कर्नाटक में कांग्रेस की भारी जीत को नज़रअंदाज़ करते हुये केन्द्र सरकार के खिलाफ अपनी मुहिम तेज कर दी है और इसके लिये उन्होंने सोशल नेटवर्किंग का सहारा लिया है। उन्होंने फेसबुक मित्रों से सीबीआई के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी पर राय माँगी है। कांग्रेस को सर्वोच्च न्यायालय ने कोयला घोटाले पर बेहद तल्ख टिप्पणी कर तगड़ा झटका दिया है। कोलकाता उच्च न्यायालय ने भी उन्हें बड़ी राहत दी है, जबकि शारदा चिट फण्ड फर्जीवाड़े पर दायर जनहित याचिकाओं को 14 मई तक स्थगित करते हुये उच्च न्यायालय ने कह दिया कि शारदा समूह नाम की कोई कम्पनी ही नहीं है। इसी के साथ राज्य भर में शारदा समूह के खिलाफ आम निवेशकों, एजेन्टों और दूसरे लोगों के दर्ज सैकड़ों मुकदमा का हश्र भी तय हो गया।
पश्चिम बंगाल मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी कि सीबीआई अपने मालिक की आवाज में बात करने वाला पिंजड़े में बन्द तोता बन गयी है, पर अपने फेसबुक प्रशंसकों की राय माँगी है। कोलगेट जाँच रिपोर्ट के सम्बंध में सर्वोच्च न्यायालय के हाथों सीबीआई की तीखी आलोचना पर कोई टिप्पणी किये बिना ममता ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा, 'कृपया देखें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा है – सीबीआई अपने मालिक की आवाज में बात करने वाला पिंजड़े में बन्द तोता बन गयी है।' दीदी ने अपने पोस्ट में कहा, 'आप क्या सोचते हैं? कृपया विचार दें।'
अब बंगाल में सीबीआई जाँच हो या नहीं, दीदी सीबीआई जाँच की आँच से बच नहीं पा रही हैं। उनके रेल मन्त्री रहते रेलवे में हुयी नियुक्तियों के मामले में रेलवे गेट के सन्दर्भ में सीबीआई जाँच करने जा रही है। दीदी ने जैसे थोक दरों पर परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवियों को विभिन्न रेलवे कमिटियों में भारी भरकम वेतन भत्ते पर नियुक्त किया था, अब उस मामले में भी सीबीआई जाँच होने की आशंका है।
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