Thursday, May 9, 2013

आदिवासी जीवन के पहले फिल्मकार थे ऋत्विक घटक

आदिवासी जीवन के पहले फिल्मकार थे ऋत्विक घटक


 सिनेमास्‍मृति

आदिवासी जीवन के पहले फिल्मकार थे ऋत्विक घटक

8 MAY 2013 NO COMMENT

♦ संजय कृष्ण

दिवासी जीवन पर पहली बार ऋत्विक घटक ने डाक्यूमेंट्री बनायी। बिहार सरकार का यह प्रयास था। ऋत्विक की उम्र तब यही कोई 25 के आस-पास थी। इप्टा से जुड़ चुके थे और नाटक लिखना भी शुरू कर दिया था। झारखंड से उनका परिचय हो चुका था। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत 'बेदिनी' फिल्म से की थी। 1952 में फिल्म यूनिट को लेकर घाटशिला आये और स्वर्णरेखा नदी के किनारे 20 दिनों तक रहे और शूटिंग की। हालांकि यह फिल्म रिलीज नहीं हो सकी।

घटक आदिवासी समाज को सत्यजीत रॉय की तरह नहीं देखते थे। उन्होंने 'आदिवासी जीवन के स्रोत' एवं 'उरांव' बनायी, तो आदिवासी समाज को, उनकी संस्कृति को निकट से देखने की कोशिश की। फिल्मकार मेघनाथ के शब्दों में, "वे आई-लेवल से देख रहे थे।" यानी, यह दृष्टि समानता की थी, संवेदना की थी। दोनों डाक्यूमेंट्री की शूटिंग रांची और आस-पास और नेतरहाट क्षेत्र में की गयी थी।

'आदिवासी जीवन के स्रोत' की जब शूटिंग कर रहे थे, तो बीच में अपनी व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय निकालकर अपनी पत्‍नी को पत्र लिखते। एक पत्र 22 फरवरी 1955 का है। लिखा है, "उरांव-मुंडा के साथ सारा दिन बीत रहा है। इनके साथ रहकर मिट्टी की गंध मिल रही है। इनका अपूर्व गान हमें मदहोश कर दे रहा है।" आदिवासियों के सामाजिक जीवन की विसंगतियों की ओर भी ध्यान दिलाते हैं। लिखते हैं, "आदिवासियों में बचने की इच्छा है। यहां की सुंदरता भी इतनी अपार है कि इसका बूंद मात्र ही कैमरे में कैद कर पा रहा हूं।" वे उरांव नृत्य पर भी मोहित होते हैं।

इस अपूर्व सौंदर्य को कैद करने के लिए घटक फिर रांची आये और अपनी 'अजांत्रिक' फिल्म की शूटिंग रांची, रामगढ़ रोड आदि क्षेत्रों में की। यह फिल्म बांग्ला में है, लेकिन पहली बार उरांव यानी कुड़ुख भाषा में संवाद और नृत्य को इस फीचर फिल्म में दिखाया गया है। उनके नृत्य से घटक काफी भाव-विभोर थे। इसलिए इसमें सरना झंडे भी लहरा रहे थे। आदिवासी जीवन की सरलता, लावण्यता का अनुभव किया। मेघनाथ कहते हैं कि अजांत्रिक मानुष और मशीन के बीच संबंधों की कहानी हैं। हास्य का पुट है। लेकिन यह हंसी हूक भी पैदा करती है। बहरहाल, ऋत्विक घटक को झारखंड काफी पसंद था। इसे वे कभी भूले नहीं। जब 1962 में सुबर्णरेखा बनायी, तब भी नहीं।

(संजय कृष्‍ण। वरिष्‍ठ पत्रकार। साहित्‍य और समाज के मसलों पर लगातार लिखते हैं। उनके ब्‍लॉग सोच पर आप उनकी लिखी रपटें, आलेख पढ़ सकते हैं। इन दिनों दैनिक जागरण के रांची संस्‍करण से जुड़े हैं। उनसे s_krisn@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता है।)

http://mohallalive.com/2013/05/08/ritwik-ghatak-was-the-first-filmmaker-of-tribal-life/

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