अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष प्रणाली में सुधार के निर्णय शीघ्रता से लागू हों: चिदंबरम
उन्होंने यहां इक्रियर के एक समारोह में कहा, '' ज्यादातर विकसित देशों ने अब साफ कर दिया है कि वे बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों (मुद्राकोष, विश्वबैंक) की संचालन व्यवस्था व उनके पूंजीगत ढांचे में सुधार के प्रस्तावों पर आगे कदम बढाने को तैयार नहीं है। इससे जी-20 की विश्वसनीयता प्रभावित हुई है और अन्य मामलों में आगे बढ़ना भी मुश्किल हो गया है।''
वित्त मंत्री ने कहा कि वैश्विक व्यवस्था के संचालन में जी20 की अर्थपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि जी-20 का दृष्टिकोष्ण सीधा और सटीक हो तथा वह खास कर आर्थिक एवं वित्तीय मामलों में कुछ अलग प्रभाव छोड़ने वाला हो।
उन्होंने कहा '' महत्वपूर्ण यह है कि जी-20 बैठकों में लिए गए फैसलों को तेजी से आगे बढ़ाया जाए।''
उन्होंने कहा ''दिसंबर 2013 में बाली में होने वाली विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक के मद्देनजर जी-20 के नेताओं ने विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों से लचीलापन दिखाने का आह्वान किया है ताकि बाली बैठक सफल हो।'' हाल में संपन्न जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आईएमएफ के कोटा व्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया जल्दी पूरी करने पर जोर दिया था ताकि इस बहु-पक्षीय संस्था में विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व बढ़ सके।
विकासशील देशों के मताधिकार में सुधार और आईएमएफ के निदेशक मंडल में बेहतर प्रतिनिधित्व के लिए बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं की संचालन व्यवस्था में सुधार जी-20 एजेंडे का मुख्य हिस्सा था।
जी-20 विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है।
चिदंबरम ने कहा कि जी-20 शक्ति के अलग संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें विकसित और उभरते देश बराबर के भागीदार के तौर पर इकट्ठा होते हैं जो आज की जटिल वैश्विक चुनौतियों और अवसरों के लिए अपेक्षाकृत अधिक समावेशी और प्रभावी योजना को स्वीकृत करते हैं।
उन्होंने कहा ''स्पष्ट है कि विकास की चुनौतयों के आयाम देश-देश पर निर्भर करते हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर जिस भी नीति का सुझाव दिया जाता है उसे उक्त देश की परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।''
उन्होंने कहा कि जी-20 के लिए जो एजेंडा तय किया जाता है वह विकसित देश के परिप्रेक्ष्य में होता है। यह बात एजेंडा में वित्तीय नियमन और पारदर्शिता पर जोर दिए जाने में स्पष्ट रूप से झलकती है।
चिदंबरम ने कहा '' चूंकि संकट विकसित देश में शुरू हुआ । इसलिए बहुत स्वाभाविक है कि बासेल मानदंड में बैंकों के लिए बैंकों का पूंजी आधार मजबूत करने तथा बेहतर ऋण खातों की गुणवत्ता में सुधार पर अधिक बल दिया गया है।''
उन्होंने कहा कि उभरते बाजारों ने इन मानदंडों को स्वीकार किया है।
उन्होंने यहां इक्रियर के एक समारोह में कहा, '' ज्यादातर विकसित देशों ने अब साफ कर दिया है कि वे बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों (मुद्राकोष, विश्वबैंक) की संचालन व्यवस्था व उनके पूंजीगत ढांचे में सुधार के प्रस्तावों पर आगे कदम बढाने को तैयार नहीं है। इससे जी-20 की विश्वसनीयता प्रभावित हुई है और अन्य मामलों में आगे बढ़ना भी मुश्किल हो गया है।''
वित्त मंत्री ने कहा कि वैश्विक व्यवस्था के संचालन में जी20 की अर्थपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करने के लिए यह जरूरी है कि जी-20 का दृष्टिकोष्ण सीधा और सटीक हो तथा वह खास कर आर्थिक एवं वित्तीय मामलों में कुछ अलग प्रभाव छोड़ने वाला हो।
उन्होंने कहा '' महत्वपूर्ण यह है कि जी-20 बैठकों में लिए गए फैसलों को तेजी से आगे बढ़ाया जाए।''
उन्होंने कहा ''दिसंबर 2013 में बाली में होने वाली विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तरीय बैठक के मद्देनजर जी-20 के नेताओं ने विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों से लचीलापन दिखाने का आह्वान किया है ताकि बाली बैठक सफल हो।'' हाल में संपन्न जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आईएमएफ के कोटा व्यवस्था में सुधार की प्रक्रिया जल्दी पूरी करने पर जोर दिया था ताकि इस बहु-पक्षीय संस्था में विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व बढ़ सके।
जी-20 विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है।
चिदंबरम ने कहा कि जी-20 शक्ति के अलग संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें विकसित और उभरते देश बराबर के भागीदार के तौर पर इकट्ठा होते हैं जो आज की जटिल वैश्विक चुनौतियों और अवसरों के लिए अपेक्षाकृत अधिक समावेशी और प्रभावी योजना को स्वीकृत करते हैं।
उन्होंने कहा ''स्पष्ट है कि विकास की चुनौतयों के आयाम देश-देश पर निर्भर करते हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर जिस भी नीति का सुझाव दिया जाता है उसे उक्त देश की परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।''
उन्होंने कहा कि जी-20 के लिए जो एजेंडा तय किया जाता है वह विकसित देश के परिप्रेक्ष्य में होता है। यह बात एजेंडा में वित्तीय नियमन और पारदर्शिता पर जोर दिए जाने में स्पष्ट रूप से झलकती है।
चिदंबरम ने कहा '' चूंकि संकट विकसित देश में शुरू हुआ । इसलिए बहुत स्वाभाविक है कि बासेल मानदंड में बैंकों के लिए बैंकों का पूंजी आधार मजबूत करने तथा बेहतर ऋण खातों की गुणवत्ता में सुधार पर अधिक बल दिया गया है।''
उन्होंने कहा कि उभरते बाजारों ने इन मानदंडों को स्वीकार किया है।
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