Wednesday, September 11, 2013

सांगठनिक कवायद बन गया जी का जंजाल,नया चेहरा नहीं कोई, माकपा में गृहयुद्ध का नजारा

सांगठनिक कवायद बन गया जी का जंजाल,नया चेहरा नहीं कोई,

माकपा में गृहयुद्ध का नजारा

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

सत्ता में वापसी के लिए सबसे जरुरी सांगठनिक कवायद माकपा के लिए अब जी का जंजाल बन गया है। पुराने लोग पार्टी के किसान नेता रज्जाक अली मोल्ला की सिफारिश के मुताबिक पार्टी और जनसंगठनों में सभी समुदायों को समुचित प्रतिनिधित्व देते हुए नये चेहरों को नेतृत्व में लाने को तैयार नहीं हैं।लेकिन इस कवायद में हिलने लगी है माकपा राज्य सचिव और पुरातन युद्धों के परखे हुए सबसे अनुभवी सिपाहसालार विमान बोस की कुर्सी, जो राज्य वाममोर्चे के भी चेयरमैन हैं।


माकपा में घमासान


माकपा में घमासान मच गया है।बुद्धदेव भट्टाचार्य के समर्थन से मजबूत गौतम देव बतौर इंचार्ज दक्षिण 24 परगना के पंचायत चुनावों के के नतीजों के मुताबिक सचिव पद के सबसे खास दावेदार बतौर उभर रहे हैं।दूसरी तरफ, तृणमूल सुप्रीमो व मुख्यमंत्री के तूफानी जमीनी नेतृत्व की तलाश पूर्व वित्तमंत्री असीम दासगुप्त तक थम गयी है।

दमदार नेतृत्व की तलाश


पिछले चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को सामने रखकर लड़ाई में बुरी तरह मात खाने के बाद माकपा को दमदार ऐसे नेतृत्व की तलाश है जो जनमानस में दीदी का विकल्प बनकर उभरे।


रज्जाक मोल्ला की सिफारिशें दरकिनार


रज्जाक अली मोल्ला की सिफारिशें जाहिर है हाशिये पर रख दी गयी है।मोल्ला ने बंगाल में वाम शासन के अवसान के लिए एकाधिकारवादी जाति वर्चस्व को जिम्मेदार बताते हुए नये नेतृत्व की मांग कर दी थी,जिसके मद्देनजर माकपा सांगठनिक कवायद में जुट तो गयी है लेकिन पुरानी बोतल में नयी शराब पेश करने के आंतरिक संघर्ष में फंसी माकपा में इस वक्त गृहयुद्ध का  नजारा है।


अनिच्छुक बुद्धदेव


पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बंगाल में औद्योगिक परिदृश्य का कायाकल्प करने की कोशिश की थी। राज्य में निवेश का माहौल बनाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता थी। पूंजी के पीछे अंधी दौड़ ने उन्हें खलनायक बना दिया। सिंगुर और नंदीग्राम भूमि आंदोलन की वजह से फोकस में आ गयी ममता बनर्जी। लेकिन बुद्धदेव बाबू अपनी नाकामी के लिए ममता को नहीं,बल्कि पार्टी के कट्टरपंथियों को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं,जिन्होंने सुधार लागू नहीं करने दिये ौर राज्य आर्थिक तौर पर दिवालिया होता गया। पिछले विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने के इच्छुक नही थे वे,फिरभी पार्टी ने उन्हें सिपाहसालार बना दिया। अब वे सामने से लड़ने के लिए एकदम अनिच्छुक हैं।


गौतम देव का दावा मजबूत


बुद्धदेव बाबू का पूरा समर्थन गौतम देव का है। जिन्हें पिछले विधानसभा चुनावों में ही बतौर विकल्प पेश करने लगी थी माकपा।लेकिन उनके आक्रामक तेवर का पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। वक्ता वे लोकप्रिय हैं और सांगठनिक काबिलियत भी है उनमें। लेकिन पार्टी न सिर्फ सत्ता से बाहर हो गयी, बल्कि वे खुद विधानसभा चुनाव हार गये। अब बुद्धदेव बहुत मजबूती के साथ गौतम देव के साथ खड़े हो गये हैं।समझा जाता है कि अबकि दफा गौतम मौका गवांना भी नहीं चाहते।शारीरिक तौर पर लड़ाई में बुद्धदेव पिछड़ गये हैं लेकिन पार्टी संगठन में उनका असर है।प्रमोद दासगुप्त के निधन के बाद कारेड ज्योति बसु जिस भूमिका में थे, बुद्धबाबू अब खुद को उसी भूमिका में देखना चाहते हैं।


पिछड़ गये सूर्य कांत


पूर्व स्वास्थ्यमंत्री सूर्यकांत मिश्र को माकपा ने विधायक दल का नेता जरुर बना दिया, लेकिन वे मैदान में ममता दीदी का मुकाबला करने की हालत में नहीं हैं। वे माकपाई मानदंड के मुताबिक आक्रामक तो हैं ही नहीं, जननेता बतौर अपने को साबित नहीं कर पाये, जबकि माकपा को अब करिश्माई नेतृत्व चाहिए जो दीदी का जवाब हो।


विमान की सीमाबद्धता


सादगी, निष्ठा और प्रतिबद्धता के लिहाज से विमान बोस अब भी अप्रतिद्वंद्वी हैं। लेकिन पार्टी संगठन पर उनकी पकड़ ढीली होती जा रही है। वे अपने स्वभाव के मुताबिक कड़ाई से प्रमोद दासगुप्त या अनिल विश्वास की तरह पार्टी संगठन को संभालने में नाकाम रहे।दासगुप्त और विश्वास दोनों में से कोई न जननेता थे और न करिश्माई। पर संगठन और सरकार दोनों पर उनकी पकड़ जबर्दस्त थी।बिना उनकी मर्जी के कोई पत्ता भी हिलता न था। कड़े निर्णय करके फेरबदल के लिए दोनों मशहूर रहे हैं। विमान बोस की सरकार पर तो कोई पकड़ थी ही नहीं। इसलिए बहुत लोग मानते हैं कि हालात बेकाबू हो जाने  और वाम सत्ता के अवसान का सबसे बड़ा कारण अनिल विश्वास का असामयिक निधन है। प्रमोद दासगुप्त की कमी अनिल विश्वास ने कभी महसूस नही करने दी। लेकिन विमानदा का बारे में ऐसा नही कहा जा सकता। माकपा के भीतर इसलिए तुरंत सचिव को बदलने की मांग जोर पकड़ती जा रही है।


असीम दासगुप्त अब आगे


लगातार तेइस साल तक वाममोर्चा सरकार के वित्तमंत्री रहे हैं असीम दासगुप्त। बुद्धदेव के सुधार अभियान में वे नहीं, बल्कि उद्योग मंत्री निरुपम सेन ही सिपाह सालार रहे हैं।बंगाल की मौजूदा आर्थिक बदहाली के लिए कुछ लोग उन्हें सबसे ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं। बहुत कम समय तक बंगाल के वित्तमंत्री रहने के बावजूद आज भी अशोक मित्र की जो छवि है,उससे वंचित हैं असीम बाबू।वे लोकप्रिय जननेता भी कभी नहीं रहे, लेकिन विडंबना यह है कि सूर्यकांत के फेल हो जाने और निरुपम के हाशिये पर चले जाने,बुद्धदेव के बैराग्य की हालत में माकपा के सामने उन्हें आगे करनेके सिवाय फिलहाल कोई विकल्प है ही नहीं।


अपरिहार्य रज्जाक मोल्ला


पार्टी रज्जाक मोल्ला जैसे जमीनी नेता को सामने लाना भी नहीं चाहती,खासकर जब वे पार्टी अनुशासन के दायरे से बाहर जाने को भी नहीं हिचकते। रज्जाक मोल्ला की हालत अब दिवंगत सुभाष चक्रवर्ती जैसी हो गयी है, जो पार्टी के लिए लिए अपरिहार्य तो हैं ,पर पार्टी  उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने से बच रही है।पार्टी उन्हें किसान सभा में ही रखना चाहती है।



असीम बुद्ध गौतम तिकड़ी

माकपा में अब असीम बुद्ध गौतम तिकड़ी की चल रही है।उन्हें ही संगठन में सबसे ज्यादा समर्थन है। गौतम चुनाव न लड़कर संगठन को संभालने के िइच्छुक हैं तोअसीम दासगुप्त को सूर्यकांत के विकल्प बतौर पेश किया जा रहा है।


सामने लोकसभा चुनाव


विधानसभा चुनावों की तरह वाममोर्चा और माकपा को पंचायत चुनावों में भी मुंह की खानी पड़ी।अपने गढ़ों में भी माकपा उम्मीदवार खड़ा करने में नाकाम रही। अब सामने लोकसभा चुनाव है। केंद्र में नयी सरकार बनते न बनते बंगाल में विधानसभा चुनावों की तैयारियां शुरु होनी है। 2016 के मद्देनजर वापसी का रास्ता बनाने के लिए माकपा के सामने सागठनिक कवायद पूरी करने और लोकसभा चुनावं में कमाल करने का यह आखिरी मौका है।













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