कुमाऊं विश्वविद्यालय के डी.एस.बी.परिसर,नैनीताल में छात्र संगठन आइसा से जुड़े छात्रों द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन
कुमाऊं विश्वविद्यालय के डी.एस.बी.परिसर,नैनीताल में छात्र संगठन आइसा से जुड़े छात्रों द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन
कल दिनांक 01 अगस्त 2013 को कुमाऊं विश्वविद्यालय के डी.एस.बी.परिसर,नैनीताल में छात्र संगठन आइसा से जुड़े छात्रों द्वारा एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया था. "शिक्षा के सरोकार" विषयक इस गोष्ठी में जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय (जे.एन.यू.)के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप सिंह और जे.एन.यू. छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष सुचेता डे मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित थे.यह गोष्ठी आयोजित करने के लिए आयोजक छात्रों द्वारा परिसर निदेशक की अनुमति भी ली गई थी.
लेकिन गोष्ठी शुरू होने के कुछ ही समय पश्चात ए.बी.वी.पी.,उससे संबद्ध छात्र संघ अध्यक्ष और एन.एस.यू.आई.से जुड़े छात्रों ने गोष्ठी स्थल पर पहुँच कर हंगामा करना शुरू कर दिया और धक्का-मुक्की भी की गयी.यह बड़ी विडम्बना है कि विश्वविद्यालय परिसरों में अपने से अलग विचारधारा रखने वालों पर इस तरह से आक्रामक हमला किया जा रहा है.हालंकि ऐसी गुंडई ए.बी वी.पी.का तो पुराना इतिहास है.आज से कुछ साल पहले डी.बी.एस.(पी.जी.)कॉलेज देहरादून में जब हमने भगत सिंह के जन्मदिन पर पोस्टर प्रदर्शनी लगायी तो ये ही भाई लोग,यह कहते हुए हमसे भिड़ने को तैयार हो गए कि हमें किसी भगत सिंह की जरुरत नहीं है.एक अजीबो गरीब तर्क इन्होंने इजाद किया हुआ है कि छात्र संघ से क्यूँ नहीं पूछा?भाई जब तुम्हारे संगठन के लोग छात्र संघ में नहीं होते तो तुम क्या अपने हर कार्यक्रम के लिए छात्र संघ से अनुमति लेने जाते हो?छात्र संघ कोई कॉलेज या विश्वविद्यालय का मालिक,माई बाप या डॉन नहीं होता कि हर काम के लिए उससे मिन्नत करनी पड़े.वह छात्र हितों के लिए उनकी यूनियन है गुंडई के लिए नहीं.यह भी अजब बात है कि शिक्षा के सरोकार विषय पर गोष्ठी करना तो छात्र विरोधी कार्यवाही है और हंगामा करना,धक्का-मुक्की करना,गाली-गलौच और यहाँ तक कि वसूली भी छात्र हित के लिए की जाने वाली कार्यवाही है.
लेकिन इससे अधिक अफसोसजनक और शर्मनाक यह है कि विश्वविद्यालय परिसरों में प्राध्यापक भी भिन्न मत रखने वाले छात्रों के खिलाफ आक्रामक हो जा रहे हैं.सही और गलत का फैसला तर्कों और तथ्यों के आधार पर नहीं राजनीतिक प्रतिबद्धता के आधार पर किया जा रहा है.यही उक्त गोष्ठी के मामले में डी.एस.बी.परिसर नैनीताल में भी हुआ.अनुमति लेकर गोष्ठी करने वाले छात्रों के पक्ष में खड़े होने के बजाय इस परिसर के नियंता मंडल(प्राक्टर बोर्ड) ने हुडदंगी छात्रों के पक्ष में खडा होना ही पसंद किया.जिस नियंता मंडल की जिम्मेदारी परिसर में अनुशासन कायम करने की है,वह हुडदंगियों के साथ हो कर, गोष्ठी जैसी अकादमिक गतिविधि नहीं होने देगा तो ऐसे विश्वविद्यालय में अकादमिक माहौल की हालत समझी जा सकती है.परिसर निदेशक प्रो.बी.आर.कौशल जिन्होंने स्वयं इस गोष्ठी के आयोजन की अनुमति दी थी,वे भी हंगामा करने वालों के साथ हो गए.
विश्वविद्यालय में इस तरह की अराजकता और हुडदंग को रोकने और ऐसा करने वालों को प्रश्रय देने वाले विश्वविद्यालय के जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही होनी चाहिए ताकि विश्वविद्यालय में अकादमिक और सांस्कृतिक वातावरण कायम रह सके.तमाम विचारधाराओं को वैचारिक अभिव्यक्ति का लोकतांत्रिक अधिकार है. विश्वविद्यालयों को कांग्रेस-भाजपा से जुड़े हुडदंगी छात्र नेताओं और उनको प्रश्रय देने वाले प्राध्यापकों का अखाड़ा नहीं बनाने दिया जाना चाहिए.
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