युगमंच का 'कोर्टमार्शल'
By कार्यालय प्रतिनिधि on June 2, 2011
35 सालों की रंगयात्रा के बाद उत्तरी भारत में अपना प्रमुख स्थान बनाने वाले 'युगमंच' एक लम्बे अन्तराल के बाद पुरानी प्रस्तुतियों के दोहराव से बचते हुए एक नया नाटक सामने लाया, लेकिन 15-16 अप्रेल को सीआरएसटी, नैनीताल के सभागार में प्रस्तुत 'कोर्टमार्शल' युगमंच की प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं रहा। लगता है कि होली महोत्सव, लोकगीत, लोक नृत्यों व फिल्म समारोहों की ओर बढ़ते रुझान ने इस संस्था के मूल कार्य को भटका दिया है।
स्वदेश दीपक की रचना 'कोर्टमार्शल' सेना के अफसरों द्वारा अपने मातहत सिपाहियों को जाति व रंगभेद के आधार पर प्रताडि़त करने, अघोषित सजा देने, देश के मजबूत तंत्र 'सुरक्षा' के इर्द-गिर्द मानवीय संवेदना की अनदेखी जैसे कटु सत्य को उजागर करता है। नाटक फौजियों की मनोदशा का प्रभावशाली चित्रण करता है। यह नाटक अस्सी के दशक से बहुत अधिक खेला गया। किसी भी नाटक में विभिन्न पक्षों- अभिनय, संवाद, मंचसज्जा, संगीत, वेशभूषा, प्रकाश व्यवस्था आदि का सामंजस्य जरूरी है। एक भी कमजोर पक्ष नाटक के समग्र प्रभाव को नष्ट कर देता है। लेकिन कोर्टमार्शल में शायद ही कोई पक्ष प्रभावित कर पाया हो। अभिनेताओं में कमल जोशी, बृजेश जोशी, नवीन बेगाना, पवन कुमार और दीपक सहदेव ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करने की भरपूर कोशिश की। हालाँकि कर्नल सूरत सिंह रावत की भूमिका में भाष्कर बिष्ट अपने पात्र के साथ सामंजस्य नहीं बिठा सके और न्यायप्रिय फौजी अफसर की जगह खलनायक जैसे लगने लगे।
ज़हूर आलम व जितेन्द्र बिष्ट द्वारा निर्देशित इस नाटक की उपलब्धि यही रही कि पिछले लम्बे समय बाद 'युगमंच' ने दुबारा नाटकों में रुचि दिखा कर नैनीताल के रंगकर्मियों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की कि वह अपनी जिम्मेदारियों को भूला नहीं है। लेकिन यह उद्देश्य सफल तभी होगा, जब इस संस्था के प्रमुख लोग ईमानदारी से नैनीताल के नाट्य जगत में आये बिखराव का 'कोर्टमार्शल' कर उसे दुरुस्त करने की ओर उद्यत होंगे।
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- Manwesh on मानसून में कई रूप दिखते हैं हिमालय के…
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- sanjay chauhan pipalkoti on अण्णा हजारे को सलाम…लेकिन माजरा क्या है ?
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- प्रमोद जोशी on अण्णा हजारे को सलाम…लेकिन माजरा क्या है ?
- Manish Chandra Pande on अण्णा हजारे को सलाम…लेकिन माजरा क्या है ?
- यशवंत भंडारी जैँती on इस तरह भटकती है पत्रकारिता !
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